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पिन्टू अग्रवाल चामुंडेरी/संदीप दवे
पाली। जिले के बाली तहसील के भाटूंद ग्राम शीतला माता के मेले में सैकड़ों साल पुराना इतिहास पुन बुधवार 11 जून 2025 को दोहराया गया। यहां पर शीतला माता के मंदिर में आधा फीट गहरा और इतना ही चौड़ा उखल है, जिसे साल में दो बार श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। बुधवार को भी शुभ मुहूर्त में ओखली में गांव की महिलाओं तथा बालिकाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में मटकी में पानी लाना शुरू किया।
करीब एक घंटे तक हजारों घड़ों पानी अनवरत ओखली में उड़ेलना का क्रम चलता रहा। फिर पूजारी द्वारा माताजी को लगाया भोग, माता के मंदिर में लगे मेले में विभिन्न रंग बिरंगी वेशभूषा पहन कर गेर नृत्य किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
भाटून्द गांव में स्थित शीतला माता मंदिर की एक रहस्यमयी ओखली श्रद्धालुओं और वैज्ञानिकों के लिए आज भी रहस्य बनी हुई है. यह ओखली मात्र एक फीट गहरी और छह इंच चौड़ी है, लेकिन इसमें लाखों लीटर पानी डालने के बाद भी यह नहीं भरती. हालांकि, जब मंदिर के पुजारी पूजा-अर्चना कर पंचामृत दूध की कुछ बूंदें डालते हैं, तो ओखली का पानी अचानक छलकने लगता है. इस रहस्य को समझने के लिए कई बार कोशिश भी की जा चुकी है लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया.
साल में दो बार होता है ये खास अनुष्ठान
यह चमत्कारी ओखली साल में दो बार- शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन खोली जाती है. इन अवसरों पर गांव की 36 जातियों की महिलाएं कलश लेकर मंदिर पहुंचती हैं और ओखली में पानी डालने की परंपरा निभाती हैं. इस दौरान पूरा गांव एक भव्य मेले में बदल जाता है.
क्या है ओखली का रहस्य
गांव में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, हजारों साल पहले यहां बाबरा नामक राक्षस का आतंक था. वह अदृश्य होकर गांव में तबाही मचाता था और हर शादी में तीसरे फेरे के दौरान दूल्हे की हत्या कर देता था. इस अत्याचार से परेशान होकर गांव के ब्राह्मणों ने उछैरा (उटबदा) गांव जाकर मां शीतला की तपस्या की. देवी प्रसन्न हुईं और एक बालिका का रूप धारण कर भाटून्द गांव आईं
गांववालों के अनुरोध पर देवी ने स्वयं शादी के मंडप में तीसरे फेरे के समय प्रकट होकर राक्षस का वध कर दिया. मरने से पहले राक्षस ने साल में दो बार बलि और मदिरा की मांग की, जिसे मां शीतला ने अस्वीकार कर दिया. इसके स्थान पर गुड़, आटे और दही का भोग और पानी देने का निर्णय लिया गया. माना जाता है कि यह रहस्यमयी ओखली ही वह स्थान है, जहां डाला गया पानी राक्षस तक पहुंचता है.
वैज्ञानिकों के लिए भी बना रहस्य
कई लोगों ने इस रहस्य को समझने के लिए बावड़ियों और कुओं से पानी निकालकर ओखली में डाला, लेकिन यह कभी नहीं भरी. इस चमत्कार को देखने देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु और वैज्ञानिक आते हैं, लेकिन अब तक कोई भी इस गूढ़ रहस्य को सुलझा नहीं पाया है.
हर साल लगता है मेला
शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ पूर्णिमा पर गांव में विशाल मेला लगता है. इस दौरान देशभर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुंचते हैं और इस चमत्कारिक घटना का साक्षी बनने का प्रयास करते हैं. राजस्थान में यह इकलौता शीतला माता मंदिर है, जहां यह अनोखी परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है.


