
PALI SIROHI ONLINE
जोधपुर-जोधपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। 2010 में पट्टे रद्द करने के बावजूद उसी भूमि के लिए नई फाइल बनाकर पट्टे दोबारा जारी कर दिए गए। इसकी शिकायत लोकायुक्त तक पहुंची। लोकायुक्त कार्यालय की जांच में सामने आया कि जेडीए अधिकारियों ने पुराने तथ्यों को छुपाया था। लोकायुक्त सचिवालय ने दोषी अफसरों की जानकारी मांगी लेकिन वो भी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
दरअसल, मामला जोधपुर के उम्मेद क्लब रोड निवासी प्रदीप विधानी की शिकायत से जुड़ा है। जो जोधपुर के पाल क्षेत्र में पशु मेला मैदान के पास स्थित खसरा संख्या 374 और 374/1 से संबंधित है। इससे संबंधित दस्तावेजों के अनुसार, 22 अप्रैल 2010 को उपायुक्त दक्षिण जोधपुर विकास प्राधिकरण द्वारा आदेश क्रमांक 90बी/नियंत्रण/उपायुक्त दक्षिण/10/704 के तहत खसरा संख्या 374 और 374/1 में जारी भूमि के पट्टे खारिज करने का स्पष्ट आदेश दिया गया था। लेकिन इसके बावजूद बाद में अधिकारियों ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को छुपाते हुए नई पत्रावली शुरू की और उन्हीं भूखंडों के पट्टे दोबारा जारी कर दिए।

अनुसूचित जाति बता किया फर्जीवाड़ा
इस प्रकरण का एक गंभीर पहलू यह है कि चेतन पत्नी गजेंद्र की वास्तविक जाति माली है, लेकिन खुद की जाति मेघवाल (अनुसूचित जाति) बताकर फर्जीवाड़ा किया गया। जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया कि चेतन व उसके पति गजेंद्र की जाति मेघवाल न होकर माली है।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, प्रकरण संख्या 156/2006 पुलिस थाना उदय मंदिर में दर्ज मामले में भी गजेंद्र परिहार पुत्र देवकिशन जाति माली के रूप में उल्लेखित है। इसी प्रकार कोर्ट के एक निर्णय में भी गजेंद्र की जाति माली होना अंकित है।
10 साल तक सीमांकन और मौके की रिपोर्ट नहीं
लोकायुक्त सचिवालय की ओर से बार-बार रिपोर्ट, दस्तावेज और जवाब मांगे गए, लेकिन JDA के अधिकारियों ने जानबूझकर टालमटोल की। 2010 से 2020 तक मौके की रिपोर्ट और सीमांकन नहीं किया गया। जिन अधिकारियों को नोटिस दिए गए, उनमें से कई ने अदालत में स्थगन आदेश का हवाला देकर कार्रवाई से बचाव किया, जबकि 23 अतिक्रमणों में 6 मामलों में ‘अज्ञात’ लिखकर पल्ला झाड़ लिया गया।
इतना ही नहीं, लोकायुक्त सचिवालय से फटकार के बावजूद जेडीए सचिव द्वारा जारी नवीनतम आदेश के अनुसार, गांव पाल के खसरा संख्या 374 और 374/1 में स्थित सभी भूखंडों के संबंध में जारी पट्टा विलेख बाबत समस्त कार्यवाही को ‘Kept in Abeyance’ रखा गया है। यह आदेश तब तक लागू रहेगा जब तक कि प्रकरण में सक्षम स्तर से अंतिम निर्णय नहीं हो जाता।
लोकायुक्त की सख्त टिप्पणी और कार्रवाई की सिफारिश
लोकायुक्त सचिवालय, जयपुर ने इस मामले में परिवाद संख्या एफ 17(12)/लोआस/2021 के तहत कई बार नोटिस जारी करने के बाद भी संतोषजनक जवाब न मिलने पर लोकायुक्त ने कड़े कदम उठाए हैं। जेडीए अधिकारियों की भूमिका पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि अधिकारियों ने जानबूझकर रिपोर्ट और दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए, जिससे जांच में बाधा आई।
लोकायुक्त ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि यदि नियत तिथि तक वांछित रिपोर्ट नहीं भेजी गई, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ जमानती/गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा सकता है। साथ ही, लोकायुक्त ने यह भी कहा कि जेडीए के जिन अधिकारियों ने अदालती आदेश या स्थगन के बिना कार्रवाई नहीं की, उनके नाम, पदनाम और वर्तमान पदस्थापन की सूची प्रस्तुत की जाए, ताकि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सके।


