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खीमाराम मेवाड़ा/जगदीश सिंह गहलोत/जगे सिंह देवड़ा/ पिंटु अग्रवाल/ गनेश परमार, जयनारायण सिंह, पिंटु अग्रवाल, अमृत सिंह, दिनेश राव की रिपोर्ट
जयपुर-राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 (1994 का अधिनियम संख्या 13) की धारा-95 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार द्वारा, राज्य की ऐसी ग्राम पंचायतें जिनका कार्यकाल दिनांक 31.01.2025 तक समाप्त हो रहा है तथा उनके चुनाव अपरिहार्य कारणों से सम्पन्न नहीं हो पा रहे हैं, ऐसी समस्त ग्राम पंचायतों में संबंधित ग्राम पंचायत के निवर्तमान सरपंच को प्रशासक नियुक्त करने एवं ग्राम पंचायतों के कार्यकलापों के सुचारू संचालन की दृष्टि से प्रशासक की सहायतार्थ प्रत्येक ऐसी ग्राम पंचायत के लिए प्रशासकीय समिति का गठन किये जाने का निर्णय लिया गया है। इस प्रशासकीय समिति में ग्राम पंचायत का कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व वे व्यक्ति जो संबंधित ग्राम पंचायत के उप सरपंच एवं वार्ड पंच रहे हैं, सदस्य बनाये जायेंगे।प्रशासक द्वारा उक्त अधिनियम व संबद्ध नियमों में वर्णित समस्त शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग और पालन प्रशासकीय समितियों की बैठक में परामर्श उपरान्त किया जायेगा।
राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 एवं राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के तहत ग्राम पंचायत के खातों (Bank Accounts) का संचालन व वित्तीय शक्तियों का प्रयोग प्रशासक (निवर्तमान सरपंच) एव सम्बन्धित ग्राम विकास अधिकारी द्वारा किया जायेगा। प्रशासक एवं प्रशासकीय समिति की कार्यावधि नवनिर्वाचन के पश्चात गठित ग्राम पंचायत की प्रथम बैठक की तारीख के ठीक पूर्ववर्ती दिन तक रहेगी।अधिनियम की धारा-98 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार द्वारा समस्त जिला कलेक्टर्स को अपने जिले की संबंधित ग्राम पंचायतों में उनका कार्यकाल समाप्त होने की तिथि से उक्तानुसार प्रशासक नियुक्त करने एवं प्रशासकीय समितियों का गठन किये जाने हेतु अधिकृत किया जाता है
अब तक ग्राम सचिव लगते रहे हैं प्रशासक, नाराजगी टालने के लिए सरपंचों को प्रशासक लगाया
राजस्थान में अब तक किसी पंचायत के चुनाव टालने पर ग्राम सचिव को प्रशासक की जिम्मेदारी दी जाती रही है। इस बार प्रदेश में अलग मॉडल अपनाया गया है। सरपंचों को ही प्रशासक की जिम्मेदारी दे दी है। एक प्रशासनिक कमेटी बना दी है, जिसमें मौजूदा उप सरपंच और वार्ड पंच ही शामिल होंगे।
इस नए मॉडल के पीछे सरपंचों की नाराजगी टालने और सियासी समीकरण साधने की कोशिश को मुख्य कारण माना जा रहा है। सरपंच संघ लंबे समय से वन स्टेट वन इलेक्शन का समर्थन करने के साथ मौजूदा सरपंचों का कार्यकाल ही बढ़ाए जाने की मांग कर रहा था। सरपंच संघ ने जुलाई से ही इसके लिए मुहिम शुरू कर दी थी और विभिन्न स्तरों पर नेताओं से मिलकर ज्ञापन भी दिए थे।
*सरकार ने सरपंचों को साधा, लेकिन सियासी चुनौतियां बरकरार*
सरकार ने हर पंचायत में मौजूदा सरपंचों को ही प्रशंसक लगाकर सरपंचों को तो साध लिया, लेकिन सियासी चुनौतियां अभी भी बरकरार है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हर पंचायत में राजनीति बहुत ही अलग तरह की है। हर सरपंच का विरोधी खेमा है। मोटे अनुमान के मुताबिक एक गांव में दो से तीन राजनीतिक गुट बने हुए होते हैं। मौजूदा सरपंचों का कार्यकाल पूरा हो चुका है। उनके प्रति स्वाभाविक तौर से नाराजगी भी होती है। अब उन्हें सरपंचों का एक तरह से कार्यकाल बढ़ाने से गांव में सरपंच विरोधी खेमा इस फैसले से नाराज होगा।
*प्रशासक लगाने की समय सीमा भी तय नहीं*
सरपंचों को ग्राम पंचायत का प्रशासक नियुक्त करने की समय सीमा भी अधिसूचना में तय नहीं है। जब तक पंचायत राज चुनाव की घोषणा नहीं होगी। तब तक सरपंच ही प्रशासक के तौर पर काम करते रहेंगे।
*ग्राम पंचायत से लेकर पंचायत समितियां और जिला परिषदों का 20 जनवरी से शुरू होगा पुनर्गठन*
वहीं, ग्राम पंचायत से लेकर पंचायत समितियां और जिला परिषदों के पुनर्गठन का खाका तैयार हो गया है। प्रदेश में 20 जनवरी से लेकर 15 अप्रैल के बीच पंचायती राज संस्थाओं के पुनर्गठन का काम होगा। इसमें नई ग्राम पंचायत और पंचायत समितियां बनाने के साथ-साथ मौजूदा पंचायती राज संस्थाओं की सीमाओं में भी बदलाव होगा। इसके लिए जनसंख्या और दूरी के पुराने मापदंडों में इस बार छूट दी गई है। जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे कामों के लिए अब अधिक दूर नहीं जाना पड़ेगा। नई ग्राम पंचायत और पंचायत समितियां के लिए कलेक्टर 20 जनवरी से 18 फरवरी तक कलेक्टर प्रस्ताव तैयार करेंगे।