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माउंट आबू- माउंट आबू स्थित नक्की झील यह झील आदिवासियों के लिए हरिद्वार के समान है। नक्की झील के कानूड़ा घाट, नक्की झील के पीछे, शिव मंदिर के पास के घाट और जेटी के पास स्नान कर तर्पण करते हैं। वैशाख माह में आने वाली पीपली पूनम के एक या दो दिन पूर्व तर्पण करने वाले नक्की झील के लिए निकल जाते हैं। उन्हें सूर्योदय से पूर्व यहां पहुंचना होता है।
तर्पण में किसी पंडित की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि उनके साथ गांव का मुखिया या पटेल रहते हैं जो तर्पण की क्रिया पूर्ण करवाते हैं। मृतक के परिवार के सभी सदस्य रहते हैं। आदिवासी गरासिया समुदाय के घर में जब किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो वे सीधे हाथ की अंगुली या अंगूठे के नाखून को चांदी में मंडवाते हैं।
मिट्टी के खड़े में नाखून को रख लाल कपड़ा लपेटते हैं। नाखून लेना रह जाए तो अस्थि लेते हैं। पीपली पूनम तक रोज सुबह-शाम धूप-अगरबत्ती करते हैं। अस्थि चांदी में नहीं मंडवाते हैं। पीपली पूनम पर गुजरात के अमीरगढ़, इकबालगढ़ सहित राजस्थान के सिरोही, उदयपुर, आबूरोड के गिरवर, चंदेला, भाखर के चौबीस गांव से समुदाय के लोग आते हैं।
मध्यमा अंगुली से तिलक पुरुष सफेद धोती पहनते हैं। हाथ में नारियल, लाल पिराई, वाटकी, अगरबत्ती, नुगदी (प्रसादी) सिंदूर और मिट्टी हांडी होती है। इसमें मंडवाया हुआ नाखून होता है। तर्पण में हवन वाटकी की जाती है। प्रसादी, नुगदी का भोग लगाते हैं। परिवार के सदस्य पितृ तर्पण करते हैं। जहां सफेद पिराई के ऊपर नारियल अन्य सामग्री रखते हैं। घाट पर डुबकी लगाकर दिवंगत आत्मा के लिए प्रार्थना करते हैं।