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खीमाराम मेवाड़ा
मनुष्य आत्मा 84 लाख योनियों में नहीं भटकती है । केवल 84 बार जन्म लेकर अपने कर्मों का भुगतना करती है, भारती दीदी
तखतगढ़ 26 जुलाई :(खीमाराम मेवाड़ा) प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शाखा तखतगढ़ में आज पंचम दिवसीय श्रीमद् भागवत गीता का सत्य सार बड़े धूमधाम से संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में पहले चरण में भगवत गीताजी की आरती कराई गयी । भगवत गीता वाचक ब्रह्माकुमारी भारती दीदी जी ने गीता के सत्य सार को सिद्ध करते हुए कहां की मनुष्य आत्मा 84 लाख योनियों में नहीं भटकती है । केवल 84 बार जन्म लेकर अपने कर्मों का भुगतना करती है।एक मनुष्य जीवन एक ऐसा जीवन है जिसमें कर्म का भोग है ,दूसरे योनि में कर्म की भोगनी नहीं है।
गीता के चौथे अध्याय के पहले श्लोक में कहा है कि यह दिव्य ज्ञान पहले सूर्य को मिला सूर्य ने मनु को दिया । मनु का अर्थ है मन । मन में ज्ञान सुनकर ज्ञान का चिंतन करना है ।आगे कहा कि मनुष्य के कर्म अनुसार मनुष्य के मरने के बाद उसकी तीन गतियां दिखाई हैं एक परलोक में, दूसरा स्वर्ग लोक में ,तीसरी दूसरी योनि के रूप में ।मनुष्य जो भी कर्म करता है उसकी भोगना उसे मनुष्य योनि में ही भोगनी पड़ती और कोई योनि में वह नहीं जाता। लख 84 की भोगना मनुष्य की योनि ही है। आज समाज में दास प्रथा चली आई है कहते हैं पति परमेश्वर है और पत्नी को दासी समझते हैं इस कारण हीन भावना के रहते घर में कलह कलेश पैदा होता जिसे कहते हैं उनके बीच में 36 का आंकड़ा हैं ।भारतीय संस्कृति संबंधों को जोड़ना सिखाती तोड़ती नहीं है ।
उन्होंने रामायण का एक दृष्टांत सुनते हुए कहा कि सीता ने सोने के मृग की इच्छा जताई सोने का अमृत अर्थात मृगतृष्णा की बात यहां कहीं गई है जिसमें मनुष्य की चाय कभी खत्म नहीं होती इच्छाओं के पीछे भागने वाले को राम राज्य नहीं लंका राज्य मिलेगा जिसमें सुख नहीं दु:ख ही दु:ख है। लक्ष्मण रेखा अर्थात मर्यादा की रेखा आज समाज में नर और नारी ने अपने मर्यादा की लकीर को पार किया और उसी के कारण कई दु:खों का परिस्थितियों का सामना रोज करना पड़ता है। आत्मा अनुभूति से ही जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन होता है ।आहार ,व्यवहार, चलन बदल जाएगी ।आचार विचार बदली होंगे ।सत्संग में अगर परिवर्तन आया तो समझना चाहिए की असली में सत्संग किए हैं परिवर्तन नजर नहीं आया तो समझो मनोरंजन करके गए हैं। भगवत गीता का आरती के साथ आज के अध्याय का समापन हुआ इसमें सुदूर बालोतरा, सिणधरी ,पोकरण, जालौर, चांदराय, सिवाना, पादरू, समदड़ी और तखतगढ़ के आसपास के कई गांव के भक्तगण उपस्थित रहे