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उदयपुर-उदयपुर की कानोड़ नगर पालिका में फर्जी पट्टे जारी करने का मामला सामने आया है। तत्कालीन पालिका चेयरमैन दुर्गा मीणा और अधिशाषी अभियंता की सील और हस्ताक्षर से फर्जी पट्टे जारी हो गए। जबकि तत्कालीन चेयरमैन और अधिशाषी अभियंता ने उनकी सील और हस्ताक्षर फर्जी बताए हैं। इसका पता तब लगा, जब पट्टा रजिस्ट्रेशन के लिए फाइल तहसीलदार के पास गई।
तहसीलदार ने इन पट्टों को संदिग्ध मानते हुए नगर पालिका से जरूरी कागजात मांगे। फिर पालिका के अफसरों ने जब पट्टों की जांच की तो पता लगा कि उन संदिग्ध नामों में ऐसे पट्टे पालिका द्वारा जारी ही नहीं किए। ना ही ऐसे पट्टों का उनके पास कोई रिकॉर्ड है।
मामला उजागर होने के बाद पालिका के तत्कालीन अधिशाषी अभियंता कैलाश मीणा द्वारा कानोड़ थाना पुलिस में मामला दर्ज कराया गया है। मामला सामने आने के बाद पालिका के कर्मचारी से लेकर अफसरों में हड़कंप मच गया। इस कारनामे से पालिका के कर्मचारी से अफसरों की मिलीभगत होने की बात भी सामने आ रही है। हालांकि पुलिस जांच में ही इसका पता लग पाएगा।
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इनमें प्रकाश कुमार पिता छोगालाल और किरण पत्नी प्रकाश कुमार जोशी, लोकेश पिता उदयलाल मेहता, वसीटा शीला चम्पावत पत्नी चम्पावत वसीटा के पट्टों का पालिका में कोई रिकॉर्ड नहीं है। जबकि कमला शंकर श्रीमाली का पट्टा विवादास्पद होने से पालिका ने रोक लगाई हुई थी लेकिन फिर भी फर्जी तरीके से जारी हो गया।
3 पट्टों का कोई रिकॉर्ड नहीं, एक रोक बावजूद हुआ जारी कानोड़ पालिका में तत्कालीन अधिशाषी अभियंता और वर्तमान में प्रारूप अधिकारी कैलाश मीणा ने बताया कि तहसीलदार का पत्र मिलने पर हमने सभी 6 पट्टों की जांच हमारे यहां दर्ज रिकॉर्ड से की तो पता लगा कि इनमें से 3 पट्टे तो ऐसे हैं जिनसे संबंधित कोई कागजात पालिका में जमा ही नहीं है। ना ही इनका कोई रिकॉर्ड दर्ज है।
जबकि 3 के अलावा 1 पट्टा ऐसा है जिसकी फाइल जमा तो हुई थी लेकिन वह विवादित होने से पालिका ने निमयानुसार पट्टे की अनुमति नहीं दी थी। बाकी 2 पट्टे सही जारी किए गए। मीणा का कहना था कि मेरे हस्ताक्षर और सील का फर्जी तरीके से उपयोग कर पट्टे जारी किए गए।
मुझे पट्टे संदिग्ध लगे तो रोक दिया रजिस्ट्रेशनः तहसीलदार कानोड़ तहसीलदार रंजीत यादव ने बताया कि मेरे पास 6 पट्टे रजिस्ट्रेशन के लिए आए थे। मुझे वे पट्टे किसी कारण से संदिग्ध लगे तो मैंने उनका रजिस्ट्रेशन रोक दिया और उन 6 पट्टों से संबंधित मूल पत्रावली और रजिस्टर जावक की प्रमाणित प्रति नगर पालिका से मांगी थी। तब पता लगा कि उनमें से 4 पट्टे पालिका द्वारा जारी ही नहीं किए गए।