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सिरोही-सिरोही शहर के 250 साल पुराने श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा में 18 मई को होने वाली लक्ष्मी नारायण भगवान की प्राण प्रतिष्ठा के लिए आचार्य महेंद्र व्यास की अगुवाई में स्थानीय एवं बाहर से आए पंडित वैदिक रीति से गर्भगृह में लक्ष्मीनारायणजी, गरुडज़ी एवं दिशा देवताओं के विग्रह को स्थापित करेंगे। 16 में से 18 मई तक चलने वाले इस प्रतिष्ठा महोत्सव कार्यक्रम को लेकर आयोजन समिति जोर-शोर से तैयारी कर रही है।
आयोजन समिति के मीडिया प्रभारी संजय कुमार वर्मा ने बताया कि प्रतिष्ठा के आचार्य महेंद्र व्यास की अगुवाई में पंडितों की ओर से 16 मई को अग्नि स्थापन के साथ अन्य अनुष्ठान शुरू किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि महा विष्णु यज्ञ की पूर्णाहुति 18 मई को होगी। वर्मा ने बताया कि आचार्य के मंत्रोच्चार के बीच मेर मंडवाड़ा के तोलाजी वक्ताजी प्रजापत परिवार की ओर से भगवान लक्ष्मी नारायण के विग्रह को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। गरुड़ भगवान के विग्रह को नीमा देवी गोपाल कुम्हार की ओर से स्थापित किया जाएगा।
आचार्य महेंद्र व्यास ने बताया कि मंदिर में विग्रहों की प्राण-प्रतिष्ठा वैदिक रीति से होगी, इसमें विग्रहों की जीवंत चेतना और भगवद सत्ता का प्रत्यक्ष प्रभाव भक्तों को प्राप्त होगा। उन्होंने बताया कि इस मंदिर कि पूजा अर्चना श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े कि परंपरानुसार की जाएगी। अखाड़ा से रामझरोखा और पुराना बस स्टैंड तक की सजावट श्री आबू राज संत सेवा मंडल के सचिव महंत तीरथ गिरी महाराज ने बताया कि तीन दिन तक चलने वाले इस प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में सिद्ध महापुरुषों के आगमन से यहां के आमजन को आशीर्वाद प्राप्त होगा। उन्होंने शहर समेत जिलेवासियों को आग्रह किया कि वे इस योजना के साक्षी बने।
तीन दिनों में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। संजय वर्मा ने बताया कि महोत्सव को लेकर शहर के रेवानाथ श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा परिसर से लेकर रामझरोखा मंदिर एवं पुराना बस स्टैंड मार्ग को आकर्षक रूप से बिजली की लड़ियों व रोशनी से सजाया है। ढाई सौ साल पहले संत रेवागिरी महाराज ने जूना अखाड़ा की रखी थी नींव : आश्रम के महंत एवं आयोजनकर्ता व श्रीआबू राज संत सेवा मंडल के अध्यक्ष महंत लहर भारती ने बताया कि ढाई सौ वर्ष पूर्व संत रेवा गिरी महाराज ने इस आश्रम में श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा की नीव रखी थी।
उस समय के सिरोही रियासत के शासकों ने उनके भक्तीभाव व चमत्कार से प्रभावित हो कर उन्हें नाथ की उपाधि से सुशोभित किया। महंत लहरभारती ने बताया कि संत रेवानाथजी ने बाद में इसी आश्रम में जीवित समाधि ले ली। उन्होंने बताया कि उन्होंने 17 वर्ष की आयु में सन्यास लिया और 1986 से वे यहां के गादीपति है। वे बताते हैं कि 1999 में आश्रम के जीर्णोद्धार के साथ उन्होंने जन सहयोग से रेवेश्वर महादेव व गुरु दत्तात्रेय भगवान की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी।


