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नटवर मेवाड़ा
सांडेराव- साध्वी जमनादास की 22 वीं पुण्यतिर्थी धुमधाम से मनाई,आश्रम में हुए विशेष धार्मिक अनुष्ठान
साण्डेराव। स्थानीय नगर के अम्बिका मंदिर परिसर में साध्वी जमनाबाई की समाधि स्थल पर शुक्रवार अक्षय तृतीया पर साध्वी जमनाबाई की 22 वीं पुण्यतिथी पर आयोजित धार्मिक अनुष्ठान में सनातन धर्म प्रेमियों ने बडी संख्या में भाग लिया। संत मनसुख हिरापुरीजी महाराज की पावन निश्रा में पंड़ित कांतिलाल ओझा के नेतृत्व में ब्राहम्णों द्वारा उनके परिवार के सदस्यों की और से साध्वीजी की प्रतिमा पर पंचामृत से अभिषेक कर पवित्र गंगाजल से स्नान करवा प्रतिमा को श्रृंगारित कर मुख्य यजमानो द्वारा हवन में आहुतियां देते हुए विशेष पूजा अर्चना के बाद महाआरती की गई।
जप-तप का स्थल हैं :-
संत मनसुख हिरापुरी महाराज ने कहा कि यह आश्रम जप-तप और साधना का पवित्र धार्मिक स्थल हैं यहां के प्रत्येक कण-कण में साध्वी की महक आज भी बरकरार हैं। संत ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनां से बडो का आदर करना चाहिए, बुजुर्गो की सेवा ही ईष्वर की सेवा हैं,उनके चरणों में स्वर्ग हैं।हर मनुष्य को माता-पिता की सेवा करनी चाहिए सेवा ही सबसे बड़ा धर्म हैं।
कठोर तपस्या एवं स्वयं की मेहनत से बनाया था आश्रम :-
मेवाडा क्षत्रिय कलाल समाज गोडवाड के साण्डेराव क्षैत्र में श्रीमति जमना देवी ने मां अम्बिका की आराधना करते हुए परिवार का पालन-पोषण करने के साथ-साथ खुद की कमाई से कोडी-कोडी जोड अम्बिका मंदिर का निर्माण करवाया था।जो आज जन-जन की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। श्रीमति जमनादेवी ने चौबिस वर्षो तक कठोर तपस्या के साथ अन्न का त्याग कर नियमित माँ भवानी की सेवा-भाव में लगी रहती थी। वर्ष 1990 में सन्त मनसुख हिरापुरी महाराज के पावन निश्रा में इस मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई, 1994 में विशाल सन्त-सम्मेलन के बाद वर्ष 2003 अक्षय तृतीया के दिन उन्होने अपना देह त्याग दिया था। उसी दिन सन्त-महात्माओं के साथ सैकडों समाज बन्धुओं व सनातन धर्म प्रेमियों की उपस्थिती में विधि-विधान से उन्हे समाधि दी गई थी। संसार सागर में असंख्य लोग जन्म लेते है और जाते है लेकिन कुछ ऐसी विशिष्ट आत्माएं भी होती है जिनका लोग वर्षो बाद भी गुणगान करते है। ऐसी ही विषष्ट आत्मा साध्वी जमनाबाई है जो गृहस्थ जीवन में रहकर भी भक्ति का मार्ग अपनाया तथा उनके किरायेदार द्धारा कहे कटु शब्द के बाद अन्न का त्याग कर खुद की कमाई से मन्दिर बनाने की प्रतिज्ञा ली थी। जो कठोर तपस्या के बाद पुरी कर मेवाडा क्षत्रिय कलाल समाज नाम दुनिया में गौरवित किया।