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पाली-गुजरात के पूर्व IPS संजीव भट्ट को पालनपुर कोर्ट ने एक और मामले में 20 साल की सजा सुनाई है। 1996 में भट्ट पर पाली के वर्धमान मार्केट में किराए की दुकान को खाली कराने के लिए अफीम तस्करी के झूठे मामले में फंसाने का दोष सिद्ध हुआ था। इस मामले में पाली शहर के सीनियर वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को 28 साल बाद न्याय मिला है।
गुजरात के पालनपुर कोर्ट ने बुधवार को IPS संजीव भट्ट को दोषी करार दिया था और आज 20 साल की सजा और 2 लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। गुजरात सीआईडी ने 5 सितंबर 2018 को इस मामले में तत्कालीन IPS संजीव भट्ट को गिरफ्तार किया था। तब से भट्ट जेल में हैं। इससे पहले भट्ट को गुजरात में 1990 में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद एक व्यक्ति की हिरासत में मौत के मामले में भी उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है। भट्ट को 2015 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
1996 का मामला, दुकान खाली कराने के लिए रची साजिश
पाली के वर्धमान मार्केट में एडवोकेट सुमेरसिंह के भाई नर सिंह राजपुरोहित ने अमरी बाई नाम की महिला से दुकान नंबर 6 किराए पर ली थी। बाद में सुमेर सिंह ने इसी दुकान में अपना ऑफिस खोल लिया। दुकान मालिक दुकान खाली कराना चाहते थे। किराएदार दुकान खाली करने को तैयार नहीं थे। इस पर दुकान मालिक ने अपने रसूख का इस्तेमाल किया और वकील को झूठे मामले में फंसा कर दुकान खाली करवाने की साजिश रची।
25 अप्रैल 1996 को बीजापुर में एक शादी के दौरान दुकान मालकिन अमरी बाई गुजरात हाईकोर्ट जज आरआर जैन से मिली। उनसे दुकान खाली करवाने में मदद मांगी। जैन ने गुजरात के बनासकांठा के तत्कालीन एसपी संजीव भट्ट से दुकान खाली करवाने को कहा।
संजीव भट्ट ने दुकान खाली करवाने के लिए प्लान बना लिया। 30 अप्रैल 1996 को भट्ट ने पालनपुर (गुजरात) के होटल लाजवंती में वकील सुमेर सिंह के नाम से कमरा बुक कराया। एंट्री दर्ज कराई और होटल कर्मचारियों से तस्दीक भी करा दी।
इसी दिन (30 अप्रैल, 1996) पुलिस कंट्रोल रूम में मैसेज करवाया गया कि होटल लाजवंती में तस्करी की 5 किलो अफीम है। पुलिस ने छापा मार 1 किलो अफीम की बरामदगी दिखाई। एएसपी आईबी व्यास ने मामला दर्ज करवाया।
2 मई 1996 की रात गुजरात पुलिस पाली पहुंची और एडवोकेट सुमेर सिंह को बापूनगर (पाली) स्थित उनके आवास से उठाया। 3 मई 1996 को उन्हें गिरफ्तार बताकर रिमांड पर लेने के बाद जेल भेज दिया। 8 मई 1996 को सुमेर सिंह जमानत पर छूटे और पाली पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई। इस शिकायत पर कार्रवाई नहीं हुई।
इसके बाद 6 महीने तक वकीलों ने किया आंदोलन
पाली के वकीलों ने मई से अक्टूबर 1996 तक इस केस को लेकर आंदोलन चलाया। दो बार राजस्थान के वकीलों ने काम का बहिष्कार कर समर्थन दिया। एक बार गुजरात व चेन्नई में भी आंदोलन किया। शिकायत के बाद आरआर जैन का ट्रांसफर चेन्नई कर दिया गया था।
17 अक्टूबर 1996 को सुमेर सिंह ने कोर्ट में शिकायत दी। 18 नवंबर 1996 को पाली कोतवाली में मामला दर्ज हुआ और जांच सीआईडी सीबी को सौंपी गई। इस मामले में 8 दिसंबर 1996 को साजिश में शामिल दुकान के मालिक फुटरमल (अमरी बाई के चाचा) को गिरफ्तार कर लिया गया। जांच आगे बढ़ी तो गुजरात सीआईडी ने 5 सितंबर 2018 को इस मामले में तत्कालीन IPS संजीव भट्ट को भी गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया।
जांच में हुआ था खुलासा, जज-एसपी में हुई थी 60 बार बातचीत
सीनियर एडवोकेट सुमेर सिंह ने बताया- जांच में सामने आया कि हाईकोर्ट जज आरआर जैन व एसपी संजीव भट्ट के बीच दुकान खाली कराने से लेकर मेरी गिरफ्तारी के बाद जमानत होने तक 60 से अधिक बार बेसिक फोन पर बात हुई। यह रिकॉर्ड पुलिस दस्तावेजों में दर्ज किया। दूरसंचार विभाग से यह दस्तावेज जुटाए थे।
मुझे गिरफ्तार कर पाली से ले जाते समय रात्रि गश्त कर रहे पाली के एएसआई गोमाराम ने गुजरात पुलिस को रोका था। वे गुजरात के पुलिस दल को कोतवाली लेकर आए थे। तत्कालीन सीआई राकेशपुरी ने इसे नियम विरुद्ध बताया था। बाद में आईपीएस संजीव भट्ट ने फोन कर मुझे गुजरात पुलिस के साथ भेजने को कहा था।
इस मामले में तत्कालीन एएसपी आईबी व्यास को फर्जी केस दायर कराने को लेकर 5 सितंबर 2018 को गिरफ्तार किया गया था। वे सरकारी गवाह बने तो केस की सारी कलई खुल गई। 27 मार्च 2014 को आईबी व्यास को रिहा कर दिया गया।
भट्ट को मोदी का मुखर विरोधी माना जाता था 1990 में संजीव भट्ट जामनगर (गुजरात) में एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस के पद पर थे। बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के दौरान गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान उन्होंने 150 लोगों को हिरासत में लिया था। जेल में प्रशुदास वैष्णानी को कथित तौर पर टॉर्चर किया गया, जिसकी हॉस्पिटल में मौत हो गई थी। इसके बाद 8 पुलिस वालों पर मामला दर्ज किया गया।
संजीव भट्ट 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी थे। आईआईटी मुंबई से एमटेक थे। उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का मुखर विरोधी माना जाता था। दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक वे गांधीनगर स्थित स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो में डिप्टी कमिश्नर ऑफ इंटेलीजेंस रहे। उनके पास तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की सिक्योरिटी का जिम्मा भी था। 2002 में गोधरा में ट्रेन जला दी गई। इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए।
9 सितंबर 2002 को सीएम नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर बहुचराजी में मुस्लिम आबादी को लेकर भाषण दिया। मोदी ने ऐसे किसी भाषण से इनकार किया। इस पर एनसीएम (नेशनल कमीशन ऑफ माइनरिटी) ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी। स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो ने भाषण की एक कॉपी एनसीएम को दी। इसके बाद मोदी ने ब्यूरो के सीनियर अफसरों का तबादला कर दिया। इनमें संजीव भट्ट भी शामिल थे।
2011 में गुजरात सरकार ने भट्ट को ड्यूटी से गैरहाजिर रहने, ड्यूटी पर न रहते हुए भी सरकारी कार इस्तेमाल करने और जांच कमेटी के सामने पेश न होने को लेकर सस्पेंड कर दिया था।
संजीव भट ने गुजरात दंगों के लिए बनाई गई एसआईटी पर भी पक्षपात के आरोप लगाए थे। अप्रैल 2014 में वे सुप्रीम कोर्ट भी गए थे। लेकिन अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट में भट्ट के आरोपों को बेबुनियाद करार दिया।
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