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बांसवाड़ा-नवरात्रि में वैसे तो पूरे नौ दिन विशेष हैं, लेकिन अष्टमी और नवमी का खास महत्व है। क्योंकि अष्टमी के दिन भक्त उपवास रखते हैं और नवमी के दिन कन्या पूजन और 9 दिन के व्रत का उद्यापन होता है। इस बार लोगों में अष्टमी और नवमी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी। लोग तय नहीं कर पा रहे कि 10 अक्टूबर को या 11 अक्टूबर को अष्टमी का व्रत रखें।
इस स्थिति को देखते हुए त्रिपुरा सुंदरी मंदिर पुरोहित पंडित निकुंज मोहन पंड्या ने बताया कि इस बार अष्टमी 11 अक्टूबर और नवमी 12 अक्टूबर को रहेगी। पंड्या बताया कि गुरुवार को सप्तमी के बाद अष्टमी दोपहर 12.32 बजे प्रारंभ होगी, जो शुक्रवार को सुबह 12.07 बजे तक रहेगी। क्योंकि सप्तमी के साथ अष्टमी लेना उचित नहीं है इसलिए शुक्रवार को नवमी से पूर्व अष्टमी का खास महत्व रहेगा।
नवमी का पूजन, कन्या पूजन, भोग शनिवार को सुबह 10.58 बजे तक किया जा सकेगा। इसके बाद विजयादशमी शुरू होगी।
पंडित निकुंज मोहन पंड्या ने बताया कि “देवी पुराण के अनुसार, सदा ऐसा ही दुर्गा अष्टमी मनाएं, जो नवमी तिथि से समन्वित हो। सप्तमी तिथि से युक्त अष्टमी तिथि पूर्व जन्मार्जित पुण्य के फल का नाश कर देती है।” विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान शंकर का वचन है अष्टमी तिथि नवमी से युक्त होने पर साक्षात अर्धनारीश्वर के समान पूजनीय है और यह सभी व्रत आदि में पूजनीय है। नवमी तिथि दुर्गा की है तथा अष्टमी तिथि शंकर की है। इन दोनों तिथियों का मिलन एक ही दिवस में होना दुर्लभ माना जाती है। यह उमा-माहेश्वरी तिथि के रूप में विख्यात है। शास्त्रों में इसका फल महान पुण्यप्रद बतलाया गया है।