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जोधपुर-माली समाज की ओर से होली के दूसरे दिन धूलंडी के मौके पर मंडोर क्षेत्र में रावजी की गैर धूमधाम से निकली जा रही है। राव की गैर मांदावता बेरा मंदिर चौक से पूजा अर्चना कर खोखरिया बेरा पहुंची। यहां से गैर को साथ लेकर मंडावता चौराहा होते हुए भिंयाली बेरा, गोपी का बेरा होते हुए फतेहबाग पहुंची। गैर में चंग की थाप पर गैर की टोलियां नृत्य और गीत गाते हुए चल रही है। गेर का समापन मंडोर उद्यान पहुंचने पर होगा।
इस तरह से बनता राव
गेर में एक ओर विशेष परंपरा है, जिसके अनुसार ऐसे युवक को राव बनाया जाता है, जो नवविवाहित हो और अच्छी कद-काठी के साथ-साथ नाचने में भी माहिर हो। मंडावता बेरा के शिव मंदिर से अमूमन दोपहर साढ़े तीन बजे बाद गेर का आगाज होता है। यहां से गेर खोखरिया बेरा जाती है तथा वहां के लोगों को साथ लेकर भियाली बेरा, गोपी का बेरा के अंदर से फूलबाग नदी होते हुए फतेहबाग संतोकजी के बेरे पर पहुंचती है। यहां आमली बेरा वाले भी मौजूद रहते हैं। आमली बेरा के दो परिवार बारी-बारी से ही राव का चयन करते हैं। लेकिन खास बात यह है, कि खोखरिया बेरा से ही राव का चयन किया जाता है। वे एक युवक को चुनकर उसकी पीठ पर छापा लगाते हैं। राव तय होने के बाद उसका शृंगार किया जाता है।
सुरक्षा का रहता है जिम्मा
राव को चुनने के बाद उसको सही सलामत रूप से मंडोर उद्यान के राव कुंड तक पहुंचाने में सुरक्षा की जिम्मेदारी मंडावता बेरा के लोगों की ही होती है। इन लोगों के हाथों में लाठियां व हॉकियां होती हैं जो राव को एक घेरा बनाकर उसे आगे ले जाते रहते हैं। मंडोर उद्यान में राव कुंड पहुंचते ही सबसे पहले राव उस कुंड में डुबकी लगाते हैं। उसके बाद अन्य युवक स्नान करते हैं। जैसे ही राव कुंड में स्नान करने के लिए उतरता है, मंडावता बेरे वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी पूरी हो जाती है।