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उदयपुर-सलूंबर जिला मुख्यालय से करीब 21 किलोमीटर दूर सराड़ी गांव में आज लेपर्ड के दो शावक पिंजरे में आ गए। वन विभाग ने लेपर्ड के मूवमेंट को देखते हुए दो दिन से पिंजरा लगा रखा था। अब पिंजरे में शावक आने के बाद लेपर्ड (शावक की मां) के लिए दूसरा पिंजरा लगाया गया। अब टीम को शावक की मां का इंतजार है।
दरअसल, सराड़ी गांव में करीब डेढ़ महीने से ज्यादा समय से लेपर्ड का मूवमेंट है। लेपर्ड इतना शातिर है कि जगह बदल देता है। वन विभाग भी पिंजरे की जगह बदलता जा रहा है। यहां 9 दिन पहले एक लेपर्ड पिंजरे में आया था।
वन विभाग ने आबादी और खेतों के पास 30 जनवरी को एक पिंजरा लगाया था लेकिन लेपर्ड का कोई मूवमेंट नहीं था। 31 जनवरी की शाम को पिंजरे की लोकेशन बदल कर ढोल कांकर इलाके में मंदिर के आगे पिंजरा लगाया था। देर रात तक वन विभाग का स्टाफ वहां तैनात रहा लेकिन लेपर्ड का मूवमेंट नहीं दिखा। रात को स्टाफ वहां से निकल गया। स्टाफ शनिवार सुबह पिंजरे के पास पहुंचा तो दो लेपर्ड शावक अंदर थे।
पिंजरे में शावकों की मां के आने का इंतजार
लेपर्ड शावक का उनकी मां के साथ होना जरूरी हो गया है। वरना इन्हें सदमा लग सकता है। इसके चलते शावकों के पिंजरे के पास एक और पिंजरा लगाया है। इसके बाद उच्च स्तर पर चर्चा कर इनको दूसरी जगह छोड़ सकते है।
सलूंबर के क्षेत्रीय वन अधिकारी (RO) दिलीप सिंह चौहान ने बताया- हम मां और लेपर्ड शावक मिल जाए इसके लिए प्रयास कर रहे है। अभी तक हमने दोनों शावक को उस पिंजरे से नहीं हटाया है और उसके पास ही एक और पिंजरा लगाया ताकि मां उसमें आ जाए।
हाथ नहीं लगा सकते शावक को
जानकार बताते है कि पैंथर, बिल्ली, शेर, चीता एक ऐसी प्रजाति के जानवर है कि अगर इनका दूध पीने वाले बच्चों को अगर कोई इंसान हाथ लगा देता है तो इनको सदमा लगता है। ऐसे में बच्चा छोटा होने के कारण शिकार नहीं कर सकता है, मां दूध नहीं पिलाती है, तो बच्चा मर जाता है। ऐसी सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए लेपर्ड की मां का इंतजार किया जा रहा है।
आस-पास जंगल नहीं है
RO चौहान ने बताया- यहां सराड़ी में आसपास जहां पर लेपर्ड का मूवमेंट होता है लेकिन वहां दूर-दूर तक जंगल नहीं है। इस इलाके में खेत, राजस्व विभाग की खाली जमीन, जलाशय और बिखरी-बिखरी आबादी है। बताते है कि आसपास लेपर्ड प्यास बुझाने भी आता है और शिकार की तलाश में भी रहता है।