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अनंत चतुर्दशी पर्व पर व्रत रख भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना के बाद कथा का किया श्रवण
तखतगढ 17 सितम्बर;(खीमाराम मेवाड) मंगलवार को सुमेरपुर उपखंड एवं तखतगढ़ नगर पालिका क्षेत्र सहित
आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों ने भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनंत चतुर्दशी पर्व का व्रत रख भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा अर्चना कर 14 गांठों वाला अनंत सूत्र बांधा गया। और दोपहर 1:30 बजे कस्बे के ठाकुर जी मंदिर में पंडित निर्मल शास्त्री द्वारा अनंत चतुर्दशी के कथा का श्रवण करवाया और अनंत चतुर्दशी पर्व को धूमधाम से मनाया गया।यह है अनंत चतुर्दशी व्रत कथा, कथावाचक जयतीर्थ दास ने कहा कि प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए। कौडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे। सुशीला ने देखा वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर अषि कौडिन्य के पास आ गई। कौडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा
तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामतः ऋषि कौडिन्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते- भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।
तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले हे कौडिन्य ! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना काष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे