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खीमाराम मेवाडा
भगवान कृष्ण के जन्म और कर्म दिव्य है, उनके जन्म और कर्म सामान्य मनुष्य की तरह नहीं है, जयतीर्थ दास
तखतगढ 26 अगस्त;(खीमाराम मेवाडा) तखतगढ़ के वृंदावन निवासी श्री मद् भागवत कथा प्रवक्ता जयतीर्थ दास जी ने रायचूर कर्नाटक में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष में आयोजित हो रहे श्रीमद् भागवत कथा के षट्टे दिवस भगवान कृष्ण का 5251वां जन्म उत्सव धुम्रपान से मनाया गया। जयतीर्थ दास जी ने कहा की यह कोई कहानी नहीं है,यह सत्य घटना है, एक इतिहास है. जिसका वर्णन श्री शुकदेव गोस्वामी ने श्री मद् भागवत में और श्री गर्गाचार्य जी ने गर्ग संहिता में वर्णन किया है। उन्होंने कहा कि आज से 5251 वर्ष पूर्व आज ही के दिन भगवान श्री कृष्ण इस धरा धरती पर प्रकट हुए थे।
भगवान कृष्ण के जन्म और कर्म दिव्य है, उनके जन्म और कर्म सामान्य मनुष्य की तरह नहीं है। उन्होंने कहा देवताओं ने बड़ी सुन्दर स्तुति गाई की आप सत्य हैं। सत्यव्रत हैं, परमसत्य हैं, आप आदिमध्यान्त सत्य हैं। त्रिकालावाधित सत्य हैं। हम आपके चरणों में प्रणाम करते हैं। शायद बार-बार सत्य कहने का उनका अभिप्राय यह रहा होगा, कि आपने जो वचन दीया की मैं आप लोगों को भयमुक्त करूंगा। फिर कहां हे; प्रभु! आपके चरणों का जो आश्रय ले लेते हैं, वह व्यक्ति आपके भवसागर को सहज में ही पार कर लेते हैं। हम आपको बार-बार प्रणाम करते हैं। अनेक उदाहरणों से स्तुति गाई।
फिर बाद में वसुदेव और देवकी को भी स्वस्थ कर दिया और बोले- आपको बिलकुल डरने की जरूरत नहीं है माता! प्रभु अपने चतुर्व्यूहावतार में आए हैं। अपने अंशों के साथ आए हैं। इसलिए तुम्हें कंस से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। प्रभु तुम्हें संरक्षण देंगे। अब तो महाराज पूरी परिस्थितियां बदलने लगी। बोले- ज्यों ज्यों प्रभु के जन्म का समय निकट आया है, दुष्ट लोगों के मन में भी निर्मलता बढ़ती जा रही है। भाद्रपद मास में नदियों का जल कभी निर्मल नहीं होता, पर गोविंद के आगमन की खुशी में नदियों में भी निर्मलता बढ़ गई। अब भाद्रपद महिना आ गया, दसों दिशाएं आनंदित हैं। अब भाद्रपद मास का कृष्ण पक्ष आया अब कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा गई द्वितीया गई तृतीया आई, चौथ पंचमी षष्ठी भी बीत गई। अब सप्तमी बीती, आई अष्टमी दिन है बुधवार का, एक प्रहर बीता दो प्रहर भी बीत गया तीन,चार,पांच, छः प्रहर भी बीत गए। 3 घंटे का एक प्रहर माना गया है और 24 घंटे में आठ पहर होते हैं। जब सातवां प्रहर लगता है तो बजते हैं रात्रि के 12 इस हिसाब से माना जाए तो भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि को 12:00 बजे हुआ। तब भगवान श्री कृष्ण ने सोचा माता देवकी को सुख इसलिए मिलेगा क्योंकि उनके यहां मैं अवतरित हो रहा हूं और जशोदाजी को आनंद इसलिए मिलेगा की बाल लीला मैं उनके यहां करूंगा परंतु जिन माता रोहणी जी ने देवकी के लिए इतना बड़ा त्याग किया उन माता रोहणी जी को क्या मिलेगा?… इसलिए गोविंद ने सोचा मेरे जन्म के समय नक्षत्र रोहिणी ही होना चाहिए। इस तरह से गोविंद ने रोहिणी नक्षत्र को चुना, तिथि है अष्टमी पक्ष है कृष्ण वार है बुद्ध और नक्षत्र रोहिणी रात्रि में 12:00 बजे गोविंद प्रकट हो गए। चंद्रमा ने पूरे ब्रजमंडल की कमान संभाली और सूर्य उदय का अब तो कोई प्रश्न ही नहीं है।
फोटो -कृष्ण के स्वरूप में तैयार हुई नन्ही बालिका भाटूण्ड ग्राम की है