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- आखिर किसके दम पर तखतगढ़ नगरपालिका से गायब हुई महत्वपूर्ण पत्रावलियां*
फर्जी पट्टों का मामला फिर चर्चा में, कार्रवाई के इंतजार में जनता
तखतगढ़ 3 नवम्बर (खीमाराम मेवाडा) सुमेरपुर उपखंड की दूसरी सबसे बड़ी नगरपालिका फर्जी पट्टों के मामले में इन दिनों एक बार फिर चर्चाओं में है। प्रशासन शहरों के संग अभियान के दौरान विधि-विरुद्ध जारी पट्टों से जुड़ी कई अहम फाइलें आखिर किसके दम पर गायब बताई जा रही हैं। इन फाइलों में कस्बे के गंवई तालाब की आगोर भूमि पर नियमों के उल्लंघन के साथ जारी किए गए पट्टों का विवादास्पद मामला भी शामिल है। जिसकी शिकायत डबल इंजन की सरकार में प्रदेश स्तर तक पहुंच चुकी है।
इस मामले में आरोपियों के खिलाफ 12 जनवरी 2024 को तखतगढ़ पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था। लेकिन पुलिस प्रशासन द्वारा एक वर्ष बीतने के बावजूद भी मामला ठण्डे बस्ते में पडा हुआ है। अभी तक इस गंभीर विषय पर अनुसंधान भी अपूर्ण है। जिससे आरोपियो के हौसले बुलंद है।
साधारण सभा में उठा था मुद्दा, कार्रवाई अब तक ठंडे बस्ते मे
18 नवंबर 2024 को हुई पालिका की साधारण सभा बैठक में यह मामला फिर से गर्माया था।
पूर्व पालिका अध्यक्ष अंबादेवी रावल सहित विपक्षी पार्षदों ने स्थानीय विधायक एवं कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत के समक्ष फर्जी पट्टों के निरस्तीकरण और दोषियों पर कार्रवाई की मांग रखी थी। पूर्व चैयरमैन ने ललित रांकावत को भरी बैठक में चोर तक कह दिया था।” मंत्री कुमावत ने आश्वासन दिया था। कि “फर्जी पट्टे रद्द होंगे और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”
लेकिन एक वर्ष बीतने के बाद भी न तो जांच आगे बढ़ी, न किसी पर कार्रवाई हुई। इससे यह सवाल उठने लगा है कि — क्या इस पूरे प्रकरण में किसी बड़े नेता या प्रभावशाली व्यक्ति की भूमिका दबाई जा रही है?
भ्रष्टाचार के अन्य मामलों पर भी उठ चुके हैं सवाल
इसी बोर्ड के उपाध्यक्ष मनोज नामा ने एक वर्ष पूर्व पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार,आय-व्यय की अनियमितता और पारदर्शिता की मांग को लेकर एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन किया था।
हाल ही में उन्होंने फिर से ज्ञापन सौंपकर खांचा भूमि आवंटन, कोटेशन से हुए कार्यों और टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ियों की जांच की मांग यूडीएच मंत्री, निदेशक स्वायत्त शासन विभाग और स्थानीय निकाय उपनिदेशक जोधपुर से की है।
पालिका बोर्ड के पांच साल पूरे होने को — पर सिर्फ तीन बार हुई साधारण बैठक, चार बार बजट बैठक
नगरपालिका बोर्ड के गठन को पाँच वर्ष पूरे होने को हैं। लेकिन पूरे कार्यकाल में महज तीन बार साधारण बैठकें और चार बार बजट बैठकें आयोजित की गईं। जबकी राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 2009 की धारा 52 के अनुसार, प्रत्येक दो माह या 60 दिवस के भीतर पालिका अध्यक्ष को बोर्ड की बैठक बुलाना अनिवार्य है। इसके बावजूद 57 माह में सिर्फ तीन बैठकें ही बुलाई गईं। जो नियमों की खुली अवहेलना है। जिस मे पालिका के अधिकांश प्रस्ताव और निर्णय अधिशाषी अधिकारी (ईओ) और अध्यक्ष द्वारा ही लिए जाने की बात सामने आई है। जिससे भ्रष्टाचार की बू आ रही है। इस अव्यवस्था को लेकर जनप्रतिनिधियों और नगर वासियों में गहरा रोष व्याप्त है।
पालिका अब सवालो के घेरे में,
सुशासन, पारदर्शी और जवाबदेही शासन का दावा करने वाली डबल इंजन की सरकार अब कब तक इन गंभीर मामले पर अपनी दिलचस्पी दिखाती है। और भाजपा बोर्ड पर लगे दाग धुलवाती है। पालिका उपाध्यक्ष ने बोर्ड के पूरे कार्यकाल की जांच कराने की मांग उठाई है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस कुंभकर्णी नींद से कब जागती है। जिसका इंतजार नगरवासियों को बेसब्री से है।
*विपक्ष की चुप्पी पर भी सवाल
इतने गंभीर मुद्दों के बावजूद पालिका में विपक्ष का मौन रवैया जनचर्चा का विषय बना हुआ है। जनप्रतिनिधियों का दायित्व है। कि वे अनियमितताओं के विरुद्ध आवाज उठाएं, मगर यहां विपक्ष की निष्क्रियता ने भी जनहित को हाशिए पर धकेल दिया है।
*जनता की उम्मीदों पर पानी
पालिका से लोगों को नगर के चहुंमुखी विकास की उम्मीदें थीं, लेकिन भ्रष्टाचार ने पालिका कोष को दीमक की तरह चाट लिया है।
कई पार्षद और सत्तारूढ़ दल के नेता स्वयं ठेकेदार बन बैठे हैं। जिससे पारदर्शिता की परिभाषा ही बदल गई है।
*जनता से अपील
नगर की जनता से अपील है कि वे ऐसे जनप्रतिनिधियों को पहचानें, जो जनता की सेवा नहीं बल्कि स्वार्थ की राजनीति करते हैं। लेकिन अब दूध का जला छास को भी फुंक फुंक पीना की कहावत की तरह
आगामी चुनावों में ऐसे चेहरों को लोकतांत्रिक जवाब अवश्य देंने की जरूरत है। ताकि तखतगढ़ की पालिका फिर से जनता के विश्वास की प्रतीक बन सके।

