PALI SIROHI ONLINE
नटवर मेवाडा
सांडेराव-महिलाओं ने तीज माता की कथा सुनकर निंमडी पुजी, माता से मांगा अखंड सौभाग्य
साण्डेराव। स्थानीय नगर सहित आसपास ग्रामीण क्षैत्रों में बुधवार को कजली तीज का पर्व परम्परा अनुसार भक्ति भावना के साथ श्रद्धा पुर्वक मनाया गया। इस दौरान सुहागिन महिलाओं ने उपवास रखकर शाम को तीज माता की पूजा कर कथा श्रवण के बाद माता से अमर सुहाग की कामना की।देव मंदिरों में देव दर्शन को लेकर आज दिनभर महिलाओं की भीड लगी रहीं। शाम को ज्यादातर महिलाओं ने सामुहिक रूप से उद्यापन किया।
इस दौरान निमडी पूजन कर चांद निकलने के बाद करवों में पानी लेकर भगवान चंद्र देव को अर्द्ध दिया तथा सुहागिनों ने अपने पति का चेहेरा देख कर पतिदेव की पूजाकर सत्तु के पिण्डे बनाकर माता को भोग लगाकर व्रत खोला। ज्यादातर महिलाओं ने मिठाई की दुकानों से सत्तु सहित विभिन्न प्रकार की मिठाईयों का भोग लगाकर व्रत-उपवास खोला। सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की दीर्द्यायु व अखण्ड सौभाग्य की कामना को लेकर तथा कन्याओं ने अच्छे वर की कामना को लेकर व्रत-उपवास रखें। बुजुर्ग महिलाओं के अनुसार इस तीज को कजली तीज के साथ बूढ़ीतीज भी कहा जाता है।
अम्बिका मंदिर परिसर में चातुर्मास पर विराजित संत मनसुख हिरापुरीजी महाराज ने कजली तीज का महत्व बताते हुए कहा कि हमारे देश में शादी का बंधन सबसे अटूट माना जाता है, पति-पत्नि के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए तीज का व्रत अतिमहत्वपुर्ण है। पुरानो के अनुसार मध्यभारत में कजली नाम का एक वन था यहां के राजा दादुरै थें राजा की मृत्यु के बाद रानी नागमती सती हो गई थी इस कथा को विस्तार पुर्वक महिलाओ को समझया। संत हिरापुरीजी ने इस तीज से जुडी शिव-पार्वती से जुडी कथा बताते हुए बताया कि माता पार्वती शिव से शादी करना चाहती थी लेकिन शिव ने उनके सामने शर्त रखी वह बोला कि अपनी भक्ति और प्यार को सिद्ध करके दिखाओ। तब पार्वती ने 108 साल तक कठिन तपस्या की और शिव को प्रसन्न किया । शिव ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज को उन्हें अपनी पत्नि के रूप में स्वीकारा था। इसीलिए इसे कजली तीज कहते है। तथा बडी तीज भी कहते हुए देवी-देवता शिव-पार्वती की पूजा करते है।