PALI SIROHI ONLINE
राजसमंद-राजसमंद का पिपलांत्री गांव, जिसकी न केवल देश बल्कि विदेशों में भी एक अलग पहचान है। यह पहचान मिली है गांव की अनोखी परंपरा से। बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाने की 16 साल पुरानी इस परंपरा ने पीपलांत्री को अलग पहचान दिलाई है।
हर साल रक्ष बंधन के दिन मनाए जाने वाले पर्यावरण महोत्सव से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया जाता है। इस दिन बेटियां पेड़ों को राखी बांधती हैं और पेड़ों की सुरक्षा व संरक्षण का संकल्प लेती हैं।
गांव के तत्कालीन सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बेटी का वर्ष 2007 में निधन हो गया था। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी की याद में 2008 से इस परंपरा को संकल्प के साथ आगे बढ़ाया। ये परंपरा तभी से लगातार जारी है।
पौधे की देखभाल करने का भी संकल्प
पिपलांत्री गांव के पूर्व सरपंच और पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल ने साल 2008 में एक नई शुरुआत की थी। उन्होंने बेटी बचाओ अभियान के तहत प्रकृति से बेटी को जोड़ते हुए पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में इस परंपरा का आगाज किया। इसके तहत पिपलांत्री गांव में बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाने की परम्परा शुरू की। साथ ही यह पौधा बड़ा होकर वृक्ष का रूप ले, इसके लिए गांव की वही बेटियां इन पेड़ों को राखी बांध कर सुरक्षा का संकल्प लेती हैं। पालीवाल के अनुसार, यहां हर साल गांव में औसतन 60 लड़कियां पैदा होती हैं।
बेटियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए होती है एफडी
गांव में लड़की के जन्म पर 111 पौधों के अलावा लड़की के जन्म के समय, लड़की के माता-पिता से 10,000 रुपए और डोनर और भामाशाहों से 21,000 रुपए जुटाए जाते हैं। फिर उन्हें फिक्स्ड डिपॉजिट में डाल दिया जाता है। ग्राम पंचायत इसका हिसाब रखती है। कार्यकाल पूरा होने पर एफडी में संशोधन किया जाता है।
पंचायत रजिस्टर में लड़की के जन्म की जानकारी दर्ज करती है। इसके साथ ही जननी सुरक्षा योजना और अन्य लाभकारी सरकारी योजनाओं के लिए सभी आधिकारिक औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। गांव के लोगों ने गांव के चारागाहों पर डेढ़ लाख से अधिक पेड़ लगाने में कामयाबी हासिल की है। इनमें नीम, शीशम, आम, आंवला शामिल हैं।
पर्यटक गांव बना पीपलांत्री
राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित पिपलांत्री गांव आज पहचान का मोहताज नहीं है। यह गांव पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है और आबादी साढ़े 4 हजार के करीब है। वर्तमान में यहां की सरपंच अनिता पालीवाल हैं।
कई देसी-विदेशी पर्यटक यहां आ चुके हैं। पिपलांत्री गांव में प्रकृति से बेटी को जोड़ते हुए पर्यावरण संरक्षण व बेटी बचाओ अभियान को अपनी आंखों से देखा है। इस गांव में हर कोई आकर यह सीख लेकर जा रहा है कि एक सरपंच ने अपने स्तर पर पर्यावरण के लिए क्या किया। इस गांव में अन्ना हजारे भी आ चुके हैं और पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल की तारीफ कर चुके हैं।
2005 में सरपंच बने थे श्याम सुंदर पालीवाल साल 2005 में श्याम सुंदर पालीवाल पिपलांत्री गांव के सरपंच चुने गए थे। उस समय गांव में पेयजल, बेरोजगारी सहित सिंचाई का पर्याप्त पानी नहीं होने के कारण फसल पैदावार की समस्याएं थीं। पालीवाल ने सबसे पहले गांव में पानी की समस्या को दूर करने के लिए बेरोजगार नौजवानों को लेकर बरसाती पानी को इकट्ठा करने के लिए लगभग एक दर्जन स्थानों पर चेक डैम तैयार करवाए। इससे गांव में पानी का लेवल ऊपर आया।
गांव के आसपास मार्बल खदानों से पेड़-पौधे नष्ट हुए पिपलांत्री गांव के आसपास में धर्मेटा, मोरवड़, आरना, जूनी आरना झांझर क्षेत्र में बड़े स्तर पर मार्बल का खनन किया जाता है। इससे पहाड़ खत्म होने के साथ ही वहां बड़े स्तर पर पर्यावरण का नुकसान भी हुआ है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए गांव में ही पर्यावरण संरक्षण के लिए एक बड़ी शुरुआत की गई। ऐसी शुरुआत जिससे आमजन का जुड़ाव भी हो और आर्थिक रूप से मदद भी मिले।
महिलाओं ने दिया विशेष योगदान
गांव के पहाड़ों को फिर से हरा-भरा करने के लिए पौधारोपण का काम शुरू किया। इसमें ग्रामीणों की मदद ली गई, जिसमें विशेष तौर से महिलाओं ने अपना योगदान दिया। भामाशाहों के सहयोग से स्कूलों की इमारतें सही करवाईं, जिससे बच्चों को साधन-सुविधाओं के साथ शिक्षा मिली। श्याम सुंदर पालीवाल को इस अभियान के दौरान कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। धीरे धीरे ग्रामीण इनके साथ जुड़ते गए। आज इनके अभियान से हर कोई जुड़ना चाहता है।
विशेष तौर पर पहुंचतीं है स्कूली छात्राएं
रक्षा बंधन पर्व के तीन-चार दिन पहले पिपलांत्री की नर्सरी में बड़े स्तर पर पर्यावरण महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें विशेष तौर पर स्कूली छात्राएं पहुंचती हैं। इनको बुलाने के लिए सरकारी स्तर पर स्कूलों में न्योता दिया जाता है। इस बार ये आयोजन 16 अगस्त को हुआ। इसमें 33 नई बेटियों समेत सर्वसमाज की करीब 1000 बेटियां शामिल हुईं। इस तरह इस बार महोत्सव में 33 पेड़ लगाए गए। कार्यक्रम में सहकारिता मंत्री गौतम चंद्र दक, सांसद महिमा कुमारी मेवाड़, विधायक दीप्ति माहेश्वरी समेत कई जनप्रतिनिधि और अधिकारी शामिल हुए।
गांव में जन्मी बेटियों की ऐसे मिलती है जानकारी हर साल अगस्त से अगस्त तक गांव की एएनएम के माध्यम से बालिकाओं के जन्म की लिस्ट निकाली जाती है और पंचायत को दी जाती है। बाद में एएनएम उनके माता-पिता को पर्यावरण महोत्सव में लेकर आती हैं और बेटी के नाम का पौधा लगाती हैं। उस दिन एक पौधा लगाया जाता है, फिर साल भर शेष 110 पौधे लगाए जाते हैं। ये पौधे गांव की महिलाओं व नरेगा कर्मियों से लगवाए जाते हैं।
बेटी के जन्म पर भविष्य को लेकर ऐसे होती है प्लानिंग गांव में बेटी के जन्म पर पीएम सुकन्या समृद्धि योजना के तहत 31 हजार रुपए की एफडी करवाई जाती है, जो बेटी के वयस्क होने पर परिपक्व होती है। इस राशि में 10 हजार रुपए माता-पिता से लिए जाते हैं और शेष 21 हजार रुपए भामाशाहों से सहायता के रूप में लिए जाते हैं।
पर्यावरण महोत्सव में नजर आता है उमंग व उत्साह
रक्षा बंधन के तीन-चार दिन पहले होने वाले पर्यावरण महोत्सव में आसपास की बेटियां सज-धज कर पूरी उमंग और उत्साह के साथ पूजा की थाली लेकर पिपलांत्री गांव की नर्सरी पहुंचती हैं। इसके बाद यहां पेड़ को भाई मानकर पूजा-अर्चना कर उसे राखी बांधती हैं।
गांव में जब भी पेड़ लगाने या पर्यावरण को लेकर कार्य किया जाता है तो ग्रामीणों का सहयोग रहता है। गांव की 95 प्रतिशत महिलाएं नरेगा श्रमिक के तौर पर काम करती हैं, जो पिपलांत्री की नर्सरी में गड्ढे खोदने, पेड़ लगाने पानी व पेड़ों की सुरक्षा के साथ पौधों में पानी डालने का काम करती हैं। बेटी के जन्म पर तो एक पौधा लगाया जाता है, शेष 110 पौधे ग्रामीणों व नरेगा लेबर की सहायता से लगाए जाते हैं।
2008 से अभियान जारी
पिपलांत्री गांव में पिछले 20 साल से पेड़ लगाए जा रहे हैं, लेकिन गांव के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बेटी किरण के 2007 में निधन होने के बाद 2008 से इसे संकल्प के साथ आगे बढ़ाया गया। बाद में प्रकृति से बेटी बचाओ अभियान को जोड़ते हुए इसे आगे चलाया गया। 2008 से ये अभियान लगातार जारी है। अभी तक इस अभियान में ऐसा कोई अवसर नहीं आया जब इसे निरस्त या आगे पीछे करना पड़ा हो।
एक महीने पहले तैयारी हो जाती है शुरू
पर्यावरण महोत्सव की तैयारी एक महीने पहले शुरू कर दी जाती है। गांव में अगस्त से अगस्त एक साल के बीच जन्मी बेटियों के नाम व माता-पिता के नाम, नर्सरी में गड्ढे खोदना शुरू कर दिया जाता है।
पर्यावरण महोत्सव के दौरान मनोरंजन के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। एक बार यहां कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया है। इस बार यहां श्याम सुंदर पालीवाल नाम की फिल्म की लॉन्चिंग की गई।