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पाली-पाली में 30 साल की दाड़मी देवी करीब 6 साल बाद दूसरी बार मां बनीं। डिलीवरी से पहले रूटीन चेकअप के दौरान डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनके पेट में 3 बच्चे है। जिसके कारण समय से पहले डिलीवरी हो सकती है और जरूरी नहीं कि तीनों बच्चों को बचाया जा सके। इसके बाद परिजनों ने सबकुछ डॉक्टर पर छोड़ दिया। पूरी केयर बरती गई।
महिला की डॉक्टर्स ने हॉस्पिटल में नॉर्मल डिलीवरी करवाई। महिला ने 3 लड़कों को जन्म दिया। लेकिन जन्म के समय बच्चों का वजन कम था, सांस लेने में बच्चों को दिक्कत थी। फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं थे। लेकिन डॉक्टर्स ने हार नहीं मानी, स्पेशल ट्रिटमेंट शुरू किया।
हालांकि एक बच्चे की इलाज के दौरान मौत हो गई। लेकिन दो बच्चों को डॉक्टर ने बचा लिया। 48 दिन के इलाज के बाद आज सकुशल दोनों बच्चों को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया गया। संभवतः वर्ष 2024 में बांगड़ हॉस्पिटल में एक महिला द्वारा एक साथ तीन बच्चों को जन्म देने का यह पहला मामला होगा।
दरअसल, पाली शहर के सुभाष नगर में रहने वाले तेजाराम की 30 वर्षीय पत्नी दाड़मी देवी से 22 नवम्बर 2017 में शादी हुई। 12 फरवरी 2019 दाड़मी देवी ने फूल सी बेटी रवीना को जन्म दिया। लेकिन उसके बाद दो-तीन बार उसके गर्भ गिर गए। ऐसे में बांगड़ हॉस्पिटल के डॉ. बालगोपाल सिंह भाटी का ट्रीटमेंट लिया। इसके बाद दाड़मी देवी गर्भवती हुई। जिसके बाद परिवार में उनके लिए विशेष केयर शुरू कर दी
गई।
सोनोग्राफी से पता चला कि पेट में तीन बच्चे है डॉ. बालगोपाल भाटी ने महिला की सोनोग्राफी की जांच की तो पता चला कि उसके पेट में तीन बच्चे है। ऐसे में उसके पति तेजाराम को बताया कि दाड़मी देवी के पेट में तीन बच्चे है। ऐसे में समय से पहले डिलेवरी हो सकती और बच्चे कमजोर हो सकते है। ऐसी स्थिति में सभी बच्चों को बचाना संभव नहीं होगा। डिलीवरी से पहले डॉक्टर ने महिला की बच्चेदानी का मुंह भी बंद कर दिया। जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे समय से पहले न हो।
7वें माह में हुई डिलीवरी, बच्चों का जन्म था कम आखिरकार दाड़मी देवी को प्रसव पीड़ा होने पर परिजनों ने पाली के बांगड़ हॉस्पिटल भर्ती करवाया। जहां डॉक्टर बालगोपाल सिंह भाटी और उनकी टीम ने महिला का 21 सितम्बर 2024 को सफल प्रसव करवाया। जिसमें उसने 3 बेटों को जन्म दिया। लेकिन तीनों बच्चों का वजन काफी कम था, उनके फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं हो रखे थे, सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और संक्रमण भी हो रखा था। एक बच्चे का वजन 700 ग्राम, दूसरे का 1 KG और तीसरे का 1.4 KG ही वजन था। तीनों बच्चों को बचाने के लिए डॉक्टर्स की टीम ने पूरा प्रयास किया और तीनों बच्चों को FBNC वार्ड में भर्ती करवाया।
इलाज के दौरान एक बच्चे की मौत चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर रफीक कुरैशी, डॉ. एसएस स्वर्णकार और डॉक्टर सुशील बाकोलिया की टीम ने बच्चों का इलाज शुरू किया। दो दिन बाद 1 KG वजन वाले बच्चे की संक्रमण से मौत हो गई। शेष दोनों बच्चों को बचाने के लिए डॉक्टर्स की टीम जी जान से जुट गई। उन्हें फेफड़े पकाने की दवा सरफेक्ट दी गई। ऑक्सीजन पर रखा गया। बच्चे मां का दूध भी नहीं पी पा रहे थे। ऐसे में ट्यूब से मां का दूध पिलाया गया। जिससे दोनों बच्चों का शारीरिक विकास हो और वजन बढ़ सके।
सांस नली में चला गया दूध तो बिगड़ी तबीयत 700 ग्राम वाले बच्चे की 10 दिन पहले अचानक तबीयत बिगड़ गई। दूध पिलाते समय उसकी सांस नली में दूध चला गया। जिससे उसे निमोनिया हो गया। ऐसे में उसे 4 दिन तक वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। स्वास्थ्य में सुधार होने पर उसे फिर ऑक्सीजन पर रखा। दोनों बच्चों का हॉस्पिटल में 48 दिन तक इलाज चला। आज 700 ग्राम वाले बच्चे का वजन 1.7 KG और वजन 1.4 KG वाले बच्चे का वजन बढ़कर 2.4 KG तक पहुंच गया। दोनों बच्चे स्वस्थ है। ऐसे में शनिवार 9 नवंबर 2024 को दोनों बच्चों को डिस्चार्ज किया।
डॉक्टर बोले- जन्म के समय वजन कम था, फेफड़े विकसित
नहीं थे बांगड़ हॉस्पिटल के डॉक्टर सुशील बाकोलिया ने बताया- जन्म के समय बच्चों का वजन कम था, फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं थे। ऐसे में बच्चों को सांस लेने में दिक्क्त हो रही थी। कुछ संक्रमण भी हो रखा था। मां का दूध भी नहीं पी रहे थे। लेकिन यूनिट हेड डॉक्टर रफीक कुरेशी के नेतृत्व में डॉ. कपिल टांक, डॉ. प्रिया, रेजिडेंट डॉक्टर समीर, कैलाश, वार्ड प्रभारी इंद्रसिंह भाटी, नर्सिंग स्टॉफ रामचंद्र जांगिड़, विकास भाटी, महेंद्र कुमार, उमा सैन, समरवीरसिंह ने पूरे 48 दिनों तक इलाज में जुटे रहे, जिससे दो बच्चों की जान बचाने में कामयाब हो सके।
परिजन बोले- डॉक्टर भगवान का रूप
बच्चों के पिता तेजाराम ने बताया- वह फैक्ट्री मजदूर है। उसने बताया- आज दोनों बेटों और पत्नी को 48 दिन बाद घर सकुशल ले जाने पर काफी खुश है। डॉक्टरों ने उनके दो बच्चों का 48 दिन तक इलाज कर उनकी जान बचाई।
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