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जालोर-जालोर का सुंदेलाव तालाब। शहर का यह पवित्र सरोवर था जिसमें कभी भगवान की प्रतिमाओं को स्नान कराकर मंदिर में विराजित किया जाता था। अब हालात ये है कि शहर के सीवर का पानी इस तालाब में जा रहा है।
शनिवार को देव प्रतिमाओं को तालाब में स्नान नहीं कराया गया। देवझूलनी एकादशी पर दोपहर 3 बजे से अलग-अलग समाजों की रेवाड़ी (शोभायात्रा) निकलीं। लेकिन भगवान को तालाब के पानी में स्नान नहीं कराया गया। भक्त बाल्टी और कलशों में पानी लाए थे, जहां छींटे मारकर भगवान के स्नान की रस्म अदायगी की गई।
जल दिवस मनाया, 7 दिन में सीवर का पानी रोकने के निर्देश
जल संसाधन विभाग की ओर से यहां जल दिवस भी मनाया गया। इसके तहत अच्छी बारिश के लिए इंद्रदेव का धन्यवाद किया गया। इसमें मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग, जिला कलेक्टर डॉ प्रदीप के गवांडे, एडीएम शिव चरण मीणा, सहित विभिन्न अधिकारियों ने सुंदेलाव तालाब के पानी की पूजा की। गर्ग ने जिला कलेक्टर सहित सभी अधिकारियों को 7 दिन में सुंदेलाव में जा रहे पानी को बंद कराने के निर्देश दिए।
देव झूलनी एकादशी पर 9 समाजों की रेवाड़ी (शोभायात्रा) तालाब के किनारे पहुंची। जालोर में परंपरागत तरीके से देव झूलनी एकादशी पर रेवाड़ियां निकाली जाती हैं। इन्हें तालाब के पानी से शुद्ध किया जाता था। वर्तमान में तालाब से दुर्गंध आ रही है। ठाकुरजी समेत तमाम मूर्तियों को तालाब के पानी से स्नान कराने का रिवाज बंद हो चुका है।
जालोर शहर के धार्मिक सामाजिक संगठन व शहरवासियों ने जन प्रतिनिधियों, जिला कलेक्टर व नगर परिषद के अधिकारियों को कई बार ज्ञापन दिया। लेकिन समाधान नहीं हुआ।
माली समाज ठाकुरद्वारा 5 पट्टी सेवा संस्थान के अध्यक्ष जेठाराम गहलोत ने बताया- कृष्ण जन्माष्टमी के 18 दिन बाद देव झूलनी एकादशी पर भगवान कृष्ण (ठाकुरजी) को स्नान कराने के लिए हर समाज की रेवाड़ी शहर में घुमाकर सुन्देलाव तालाब पर पहुंचती है।
सभी समाजों की रेवाड़ीयों की सामूहिक महाआरती होती है। इसके बाद भगवान ठाकुरजी को तालाब के पानी से स्नान कराया जाता है। यह परंपरा कई दशक से चली आ रही है। लेकिन अभी तालाब में शहर के सीवरेज का पानी मिलने से यह अशुद्ध हो गया। इससे यह परंपरा समाप्त हो रही है।
शनिवार को सुबह से ही तालाब के किनारे महिलाएं पूजा करनी नजर आईं। लेकिन जिस जल का आचमन किया जाता था, वह इतना प्रदूषित हो चुका है कि उसके पास बैठना भी दूभर है।
सुंदेलाव तालाब का धार्मिक महत्व रहा है। उन्होंने बताया- अब सभी समाज की ओर से कलशों में पानी लाया जाता है और भगवान के स्नान कराया जाता है। तालाब की पवित्रता खत्म हो चुकी है। प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है।
अध्यक्ष जेठाराम गहलोत ने बताया- कुछ साल पहले तक तालाब का पानी इतना साफ होता था कि पूरे शहर की प्यास बुझाता था। अब ऐसा नहीं रहा। पूरे शहर के सीवर का पानी तालाब में जा रहा है। तालाब इतना पवित्र है कि हर समाज, हर जाति व हर धर्म के धार्मिक व सामाजिक आयोजन इसके किनारे होते रहे हैं। कृष्ण जन्माष्टमी, देव झूलनी एकादशी, गणेश प्रतिमा विसर्जन, झूलेलाल जयंती, मुस्लिम समाज के ताजिए तालाब के किनारे ही किए जाते रहे हैं।
ब्राह्मण समाज संगठन के भगवती प्रसाद शर्मा ने बताया- देव झूलनी एकादशी पर गाजे बाजे के साथ शोभायात्राएं यहां आती हैं। प्रतिमाओं को तालाब में स्नान कराया जाता था और फिर दोबारा मंदिरों में स्थापित किया जाता था। अब प्रतिमाओं को तालाब के पानी से नहीं नहलाया जाता। बल्कि दूसरे कुएं बावड़ियों से कलशों में पानी भरकर लाया जाता है और रिवाज पूरा किया जाता है।
तालाब पर सभी समाजों की ओर से सामूहिक महाआरती करने वाले मीठालाल वैष्णव बताते हैं- प्रदूषण के कारण हमारी परंपराएं खत्म हो रही हैं। सरकार और प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। तालाब को शुद्ध रखने के लिए सीवर और गंदे पानी की लाइन अलग करनी चाहिए। यह धार्मिक आस्था का सवाल है।
5 दिन से बारिश नही, फिर भी तालाब ओवरफ्लो
जालोर जिला मुख्यालय में 5 दिन से बारिश नही हुई है। सुंदेलाव तालाब सीवरेज के पानी से ओवरफ्लो चल रहा है। यह पानी निकलकर तालाब के पीछे बसी कॉलोनियों में पहुंच रहा है। लोग जलभराव और दुर्गंध से परेशान हैं। प्रशासन के पास फिलहाल इस समस्या का कोई समाधान नहीं है।
जालोर के जिला कलेक्टर डॉक्टर प्रदीप के गवांडे से बात की तो उन्होंने कहा- जालोर में सीवरेज का पानी सुंदेलाव तालाब में जाने की बात मेरे जानकारी में आई है। इसे लेकर टीमों का गठन कर निरीक्षण कराएंगे। सीवरेज ब्लॉक हैं तो उनको ठीक कराएंगे। लीकेज होकर जो पानी तालाब में जा रहा है उसे रोका जाएगा।
जालोर शहर के उत्तर-पश्चिम में बड़े भूभाग पर यह तालाब है। तालाब के तीन तरफ जालोर शहर की सघन बस्तियां हैं। जबकि उत्तर में बसावट कम है। यह रेलवे स्टेशन से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। शहर के लगभग बीचों-बीच होने के कारण पूरे शहर के सीवर का पानी तालाब में जाकर मिलता है। वर्तमान में तालाब का पानी ओवरफ्लो होकर बस्तियों में पहुंच रहा है।
यह तालाब करीब 1300 साल पुराना है। इसका निर्माण सातवीं शताब्दी में प्रतिहार राजा नागभट्ट ने कराया था। उस समय इसका कुल भराव क्षेत्र 196 बीघा में फैला हुआ था। नगर परिषद व जिला प्रशासन की अनदेखी के चलते तालाब के आसपास कॉलोनियां बस गईं। इससे अब इसका भराव क्षेत्र घटकर 147.4 बीघा ही रह गया है।
जिस तालाब को चंढीगढ़ के सुखना झील की तरह विकसित करने के लिए तत्कालीन कलेक्टर हिमांशु गुप्ता ने 4 वर्ष पूर्व मुहिम चलाई थी। विकास कार्य कराए थे। उस तालाब की अब फिर अनदेखी के चलते सौन्दर्यकरण खत्म हो रहा है।
पिछले 75 साल में केवल 7 बार हुआ ओवरफ्लो
यह तालाब पिछले 75 वर्ष में 7 बार ओवरफ्लो हुआ हैं। 1952,1973,2015,2017, 2023 व 2024 में फिर ओवरफ्लो हुआ है और बारिश रुकने के बाद भी सीवरेज के पानी से ओवरफ्लो चल रहा हैं। तालाब के तीन भागों में जालोर शहर बसा हुआ हैं। पूर्व भाग में जालोर कोतवाली, पुलिस लाईन, शिक्षा विभाग व 400 मीटर की दूरी पर जालोर विधायक व विधानसभा मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग का निवास स्थान है।
पश्चिमी भाग में गौडीजी, वाडिया व द्वितीय चरण ग्रेनाइट क्षेत्र
उत्तर दिशा में आईटी आई कॉलोनी, फतेह रायल, एफसीआई व रूप नगर सहित अन्य कॉलोनिया बसी हुई हैं। आईटीआई कॉलोनी, ज्योति बा कॉलोनी, कृष्ण नगर कॉलोनी व जेडीए कॉलोनी में तालाब के ओवरफ्लो का पानी भर रहा है।
दक्षिण भाग में जालोर शहर सहित स्वर्णगिरी पहाड़ बसा है। जालोर दुर्ग से तालाब एक झील सा नजर आता है।
तालाब किनारे बसे मंदिर
तालाब पर हनुमान मंदिर, माजिसा मंदिर, जैन मंदिर, माली समाज के खेतलाजी मंदिर, कुम्हार समाज का सती माता मंदिर, सरिया देवी माता का मंदिर, जागनाथ महादेव मंदिर, मामाजी मंदिर व चामुण्डा माता मंदिर सहित विभिन्न मंदिर हैं। जहा शुक्ल पक्ष में विभिन्न आयोजन होते हैं। जिसमें हजारों की संध्या में शहरवासी सहित ग्रामीण उमड़ते हैं।