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जालोर-जालोर का सुंदेलाव तालाब। शहर का यह पवित्र सरोवर था जिसमें कभी भगवान की प्रतिमाओं को स्नान कराकर मंदिर में विराजित किया जाता था। अब हालात ये है कि शहर के सीवर का पानी इस तालाब में जा रहा है।
देव प्रतिमाओं को अब इस तालाब में स्नान नहीं कराया जाता। आज जल-झूलनी एकादशी पर दोपहर 3 बजे से अलग-अलग समाजों की रेवाड़ी (शोभायात्रा) निकलेंगी। लेकिन भगवान को तालाब के पानी में स्नान नहीं कराया जाएगा।
जल संसाधन विभाग की ओर से यहां जल दिवस भी मनाया जाएगा। इसके तहत अच्छी बारिश के लिए इंद्रदेव का धन्यवाद किया जाएगा।
शनिवार को सुबह से ही तालाब के किनारे महिलाएं पूजा करनी नजर आईं। लेकिन जिस जल का आचमन किया जाता था, वह इतना प्रदूषित हो चुका है कि उसके पास बैठना भी दूभर है। सुंदेलाव तालाब का धार्मिक महत्व रहा है।
देव झूलनी एकादशी पर 9 समाजों की रेवाड़ी (शोभायात्रा) तालाब के किनारे पहुंचती हैं। अब तालाब को शहर के सीवरेज के पानी ने दूषित कर दिया है। नगर प्रशासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा है।
तालाब से आ रही दुर्गंध, दशकों की परंपरा खत्म
जालोर में परंपरागत तरीके से देव झूलनी एकादशी पर रेवाड़ियां निकाली जाती हैं। इन्हें तालाब के पानी से शुद्ध किया जाता था। वर्तमान में तालाब से दुर्गंध आ रही है। ठाकुरजी समेत तमाम मूर्तियों को तालाब के पानी से स्नान
कराने का रिवाज बंद हो चुका है।
जालोर शहर के धार्मिक सामाजिक संगठन व शहरवासियों ने जन प्रतिनिधियों, जिला कलेक्टर व नगर परिषद के अधिकारियों को कई बार ज्ञापन दिया। लेकिन समाधान नहीं हुआ।
माली समाज ठाकुरद्वारा 5 पट्टी सेवा संस्थान के अध्यक्ष जेठाराम गहलोत ने बताया- कृष्ण जन्माष्टमी के 18 दिन बाद देव झूलनी एकादशी पर भगवान कृष्ण (ठाकुरजी) को स्नान कराने के लिए हर समाज की रेवाड़ी शहर में घुमाकर सुन्देलाव तालाब पर पहुंचती है।
सभी समाजों की रेवाड़ीयों की सामूहिक महाआरती होती है। इसके बाद भगवान ठाकुरजी को तालाब के पानी से स्नान कराया जाता है। यह परंपरा कई दशक से चली आ रही है। लेकिन अभी तालाब में शहर के सीवरेज का पानी मिलने से यह अशुद्ध हो गया। इससे यह परंपरा समाप्त हो रही है।
उन्होंने बताया- अब सभी समाज की ओर से कलशों में पानी लाया जाता है और भगवान के स्नान कराया जाता है। तालाब की पवित्रता खत्म हो चुकी है। प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है।
अध्यक्ष जेठाराम गहलोत ने बताया- कुछ साल पहले तक तालाब का पानी इतना साफ होता था कि पूरे शहर की प्यास बुझाता था। अब ऐसा नहीं रहा। पूरे शहर के सीवर का पानी तालाब में जा रहा है।
तालाब इतना पवित्र है कि हर समाज, हर जाति व हर धर्म के धार्मिक व सामाजिक आयोजन इसके किनारे होते रहे हैं। कृष्ण जन्माष्टमी, देव झूलनी एकादशी, गणेश प्रतिमा विसर्जन, झूलेलाल जयंती, मुस्लिम समाज के ताजिए तालाब के किनारे ही किए जाते रहे हैं।
ब्राह्मण समाज संगठन के भगवती प्रसाद शर्मा ने बताया- देव झूलनी एकादशी पर गाजे बाजे के साथ शोभायात्राएं यहां आती हैं। प्रतिमाओं को तालाब में स्नान कराया जाता था और फिर दोबारा मंदिरों में स्थापित किया जाता था।
अब प्रतिमाओं को तालाब के पानी से नहीं नहलाया जाता। बल्कि दूसरे कुएं बावड़ियों से कलशों में पानी भरकर लाया जाता है और रिवाज पूरा किया जाता है।
तालाब पर सभी समाजों की ओर से सामूहिक महाआरती करने वाले मीठालाल वैष्णव बताते हैं- प्रदूषण के कारण हमारी परंपराएं खत्म हो रही हैं। सरकार और प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। तालाब को शुद्ध रखने के लिए सीवर और गंदे पानी की लाइन अलग करनी चाहिए। यह धार्मिक आस्था का सवाल है।
5 दिन से बारिश नही, फिर भी तालाब ओवरफ्लो
जालोर जिला मुख्यालय में 5 दिन से बारिश नही हुई है। सुंदेलाव तालाब सीवरेज के पानी से ओवरफ्लो चल रहा है। यह पानी निकलकर तालाब के पीछे बसी कॉलोनियों में पहुंच रहा है। लोग जलभराव और दुर्गंध से परेशान हैं। प्रशासन के पास फिलहाल इस समस्या का कोई समाधान नहीं है।
जालोर के जिला कलेक्टर डॉक्टर प्रदीप के गवांडे से बात की तो उन्होंने कहा- जालोर में सीवरेज का पानी सुंदेलाव तालाब में जाने की बात मेरे जानकारी में आई है। इसे लेकर टीमों का गठन कर निरीक्षण कराएंगे। सीवरेज ब्लॉक हैं तो उनको ठीक कराएंगे। लीकेज होकर जो पानी तालाब में जा रहा है उसे रोका जाएगा।
तालाब के सवाल पर आनाकानी कर रहे जिम्मेदार
सुंदेलाव तालाब के प्रदूषित होने के सवाल पर जब विधानसभा मुख्य सचेतक व जालोर विधायक जोगेश्वर गर्ग से सवाल किया तो उन्होंने सवाल टाल दिया। वहीं नगर परिषद सभापति गोविन्द टांक भी जिम्मेदारी लेने के बजाए आनाकानी करते नजर आए
जालोर शहर के उत्तर-पश्चिम में बड़े भूभाग पर यह तालाब है। तालाब के तीन तरफ जालोर शहर की सघन बस्तियां हैं। जबकि उत्तर में बसावट कम है। यह रेलवे स्टेशन से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है। शहर के लगभग बीचों-बीच होने के कारण पूरे शहर के सीवर का पानी तालाब में जाकर मिलता है। वर्तमान में तालाब का पानी ओवरफ्लो होकर बस्तियों में पहुंच रहा है।