PALI SIROHI ONLINE
आबूरोड-प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक ब्रह्मा बाबा की 56वीं पुण्यतिथि आज शांतिवन में विश्व शांति दिवस के रूप में मनाई जा रही है। इस अवसर पर देश-विदेश से 15 हजार से अधिक श्रद्धालु शांतिवन पहुंचे हैं, जो मौन योग साधना के माध्यम से बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।
ब्रह्मा बाबा, जिन्हें मूल रूप से दादा लेखराज कृपलानी के नाम से जाना जाता था, ने 1937 में नारी सशक्तिकरण के लिए एक अनूठी पहल की। हीरे-जवाहरात के प्रसिद्ध व्यापारी होने के बावजूद, उन्होंने अपनी समस्त संपत्ति बेचकर एक ट्रस्ट की स्थापना की और इसका संचालन महिलाओं को सौंप दिया। उनका मानना था कि नारी अबला नहीं, सबला है और वह समाज का सिर का ताज है।
18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में उनका अवसान हुआ। उनके बाद संस्थान की बागडोर राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि ने संभाली। आज संस्थान के शांतिवन, पांडव भवन और ज्ञान सरोवर परिसर को विशेष रूप से सजाया गया है। 1 जनवरी से ही सभी परिसरों में विशेष योग-तपस्या का आयोजन चल रहा है।
ब्रह्मा बाबा की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि आज ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान विश्व का सबसे बड़ा नारी संगठन बन चुका है, जो भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रतीक बन गया है। उन्होंने परिवारवाद से बचने के लिए अपनी बेटी को भी संचालन समिति में नहीं रखा, जो उनके निष्पक्ष दृष्टिकोण को दर्शाता है।
60 वर्ष की उम्र में रखी बदलाव की नींव
15 दिसंबर 1876 में जन्मे दादा लेखराज (ब्रह्मा बाबा) बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और ईमानदार थे। उन्हों परमात्म मिलन की इतनी लगन थी कि अपने जीवन काल में 12 गुरु बनाए थे। वह कहते थे कि गुरु का बुलावा मतलब काल का बुलावा। 60 वर्ष की आयु में वर्ष 1936 में आपको दुनिया के महाविनाश और नई सृष्टि का साक्षात्कार हुआ। इसके बाद आपने परमात्मा के निर्देशन अनुसार अपनी सारी चल-अचल संपत्ति को बेचकर माताओं-बहनों के नाम एक ट्रस्ट बनाया, उस समय संस्थान का नाम ओम मंडली था। वर्ष 1950 में संस्थान के माउंट आबू स्थानांतरण के बाद इसका नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय पड़ा। इसकी प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती को नियुक्त किया गया। दादा लेखराज की एक बेटी और दो बेटे थे।
फिर कभी जीवन में पैसों को हाथ नहीं लगाया
ब्रह्मा बाबा ने माताओं-बहनों को जिम्मेदारी सौंपकर खुद कभी पैसों को हाथ नहीं लगाया। यहां तक कि उनमें इतना निर्माण भाव था कि खुद के लिए भी कभी पैसे की जरूरत पड़ती तो बहनों से मांगते थे। बाबा कहते थे कि नारी ही एक दिन दुनिया के उद्धार और सृष्टि परिवर्तन के कार्य में अग्रणी भूमिका निभाएगी।
दुनिया का एकमात्र और सबसे बड़ा संगठन
ब्रह्माकुमारी संस्थान नारी शक्ति द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा और एकमात्र संगठन है। यहां मुख्य प्रशासिका से लेकर प्रमुख पदों पर महिलाएं ही हैं। नारी सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि यहां के भोजनालय में भाई भोजन बनाते हैं और बहनें बैठकर भोजन करती हैं। संगठन की सारी जिम्मेदारियों को बहनें संभालती हैं और भाई उनके सहयोगी के रूप में साथ निभाते हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम में पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी इस संगठन की सफलता और विशालता को देखते हुए कहा था कि यहां नारी शक्ति ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि नारी को मौका मिले तो वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।
140 देशों में पांच हजार सेवाकेंद्र संचालित
संस्थान के इस समय विश्व के 140 देशों में पांच हजार से अधिक सेवाकेंद्र संचालिता हैं। साथ ही 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित रूप से तन-मन-धन के साथ अपनी सेवाएं दे रही हैं। 20 लाख से अधिक लोग इसके नियमित विद्यार्थी हैं जो संस्थान के नियमित सत्संग मुरली क्लास को अटेंड करते हैं। साथ ही दो लाख से अधिक ऐसे युवा जुड़े हुए हैं जो बालब्रह्मचारी रहकर संस्थान से जुड़कर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे और सेवा के लिए राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के तहत 20 प्रभागों की स्थापना की है।