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भीलवाड़ा: अंधविश्वास का दंश नवजात की सांसों को सांसत में ला रहा है। जागरुकता के बावजूद डाम लगाने के मामले थम नहीं रहे। ऐसा ही मामला शहर से महज चार किलोमीटर दूर ईरांस गांव में हुआ। नौ महीने का बालक चीखता रहा। उसकी चीख को नजरअंदाज करके भोपा पेट पर गर्म सरिए से दागता रहा।उसका कसूर बस यह था कि उसे निमोनिया हो गया। परिजन अस्पताल ले जाने की बजाय अंधविश्वास के फेर में आ गए। तीन दिन पहले घटना के बाद हालत सुधरने की बजाए बालक की और बिगड़ गई। उसे बुधवार को मातृ एवं शिशु चिकित्सालय की गहन शिशु इकाई में भर्ती कराया गया। यहां बालक की हालत नाजुक बनी हुई है। सदर थाना पुलिस मामले में कार्रवाई कर रही है।
जानकारी के अनुसार, ईरांस निवासी देवा बागरिया के नौ महीने के बेटे गोविंद को गत दिनों बीमार होने और सांस में दिक्कत होने पर परिजन मंगलवार दोपहर देवरे पर ले गए। वहां भोपे ने पेट पर डाम लगा दिया।
गर्म सरिए के कारण बच्चा दर्द से चीखता रहा। उसकी चीख गूंजने के बावजूद भोपा और परिजन ने ध्यान नहीं दिया। डाम के कारण गोविंद के पेट पर निशान हो गए। डाम लगाने के बाद बच्चे को लेकर परिजन घर आ गए।
उधर, डाम लगने के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया। बालक की हालत बिगड़ती गई। उसे रात में अस्पताल लाया गया। यहां उसे भर्ती कर लिया गया। पुलिस ने भोपे के खिलाफ मामला दर्ज किया। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
नहीं दूर हो रहा अंधविश्वास
डाम लगाने का बड़ा कारण अंधविश्वास है। अंधविश्वास के कारण परिजन नवजात को खांसी-जुकाम होने पर चिकित्सक को दिखाने की बजाए भोपों के चक्कर में पड़कर नवजात को डाम लगवा देते हैं। हालत बिगड़ने पर चिकित्सक को दिखाया जाता है। पुलिस ने कई भोपों को मामले में गिरफ्तार भी किया है।
चार साल में जा चुकी पांच बच्चों की जान
पिछले चार साल में जिले में डाम लगाने के 15 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। इनमें पांच बच्चों की मौत हो गई। परिजनों के खिलाफ मामला भी थाने पर दर्ज कराया गया। कई मामलों में गिरफ्तारी हुई। इसके बावजूद यह सिलसिला नहीं थम रहा। ग्रामीण सर्दी-जकुाम होने पर बच्चों को चिकित्सक को नहीं दिखाते, बल्कि अंधविश्वास में रहकर डाम लगाने की घटना को अंजाम देते हैं।
