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बांसवाड़ा-बांसवाड़ा में 22 साल की गर्भवती महिला को जंजीर से बांधकर लॉक लगाकर अस्पताल ले गए। महिला को देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए। करीब साढ़े चार घंटे इलाज के बाद महिला ने दम तोड़ दिया।
कुशलगढ़ एएसआई सोहनलाल ने बताया- खेड़िया गांव की निवासी शीतल छह महीने की प्रेग्नेंट थी। वह महीने से बीमार चल रही थी। पिता श्यामलाल गरासिया बुधवार सुबह 10 बजे उसे एमजी हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। महिला को एडमिट कर लिया गया। दोपहर 2.30 बजे उसकी मौत हो गई। शीतल का ससुराल पाड़ला गांव में है।
गर्दन-कमर पर जंजीर बंधी होने के सवाल पर सोहनलाल ने बताया- परिजनों का कहना है कि शीतल बीमार चल रही थी। भोपा से इलाज कराया तो उसने जंजीर से बांधने को कहा था। हालांकि किसी के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं कराया।
13 दिन पहले पति पीहर छोड़कर गया था
शीतल के पिता श्यामलाल ने बताया- बेटी और दामाद शैलेश गुजरात के अहमदाबाद में मजदूरी करते थे। शीतल ज्यादा बीमार रहने लगी तो पति 13 दिन पहले पीहर खेड़िया छोड़ गया था। 10 दिन पहले भी बांसवाड़ा हॉस्पिटल में दिखाया था।
पिता बोले- लोगों ने कहा तो भोपा के पास गए थे
श्यामलाल ने बताया मेरे घर में पत्नी, तीन बेटे और तीन बेटियां हैं। छह बच्चों में शीतल तीसरे नंबर की थी। बेटी को खेड़िया के पास ताम्बेसरा पीएचसी में दिखाया था। वहां डॉक्टर ने कहा कि कमजोरी है। दवाएं दी, लेकिन तबीयत में सुधार नहीं आया था। उसकी तबीयत बिगड़ती तो वह अजीब सी हरकतें करती। तब लोगों के कहने पर भोपा के पास लेकर गए।
भोपा ने बताया कि शीतल पर भूत-प्रेत का साया है। उसने कमर और गर्दन को जंजीर से बांधने और ताला लगाने की सलाह दी थी। बुधवार सुबह बेटी बेहोश हो गई। इसके बाद उसे पहले ताम्बेसरा पीएचसी लेकर गए, फिर सज्जनगढ़ सीएचसी और उसके बाद बांसवाड़ा जिला हॉस्पिटल लेकर पहुंचे।
डॉक्टर बोले- 7 ग्राम रह गया था हिमोग्लोबिन
एमजी अस्पताल में लाने के बाद डॉ. पवन शर्मा ने जांचें करवाई और इलाज शुरू किया। डॉ. शर्मा के अनुसार- शीतल बेहोश थी, उसे जंजीरों से बंधा देख हैरानी हुई। वह एनीमिया से ग्रसित थी, हिमोग्लोबिन सिर्फ 7 ग्राम था।
उसे परिजन ने 10 दिन पहले भी दिखाया था। इसलिए शीतल के केस की पहले से जानकारी थी। तब फिजीशियन ने जांच कर भर्ती किया था, लेकिन परिजन बिना बताए अचानक यहां से ले गए थे। इसके बाद बुधवार को लाए। शरीर में ब्लड की कमी होने के कारण ब्लड बैंक से इंतजाम भी किया, लेकिन उसने दम तोड़ दिया। पुलिस हॉस्पिटल पहुंची तो देखा कि शरीर जंजीर में जकड़ा था।
सीएमएचओ ने कहा- झाड़-फूंक के चक्कर में नहीं पड़े
बांसवाड़ा सीएमएचओ डॉ एच एल ताबियार का कहना है- जनजातीय लोग अब भी बीमार होने पर भोपा और झोलाछाप के पास जाते हैं। इस कारण हालत अधिक बिगड़ जाती है। कई बार वे इस कंडीशन में मरीज को लाते हैं कि बहुत देर हो चुकी होती है, मरीज को बचा पाना मुश्किल हो जाता है। लोगों से अपील है कि वे झाड़फूंक के चक्कर में न पड़कर डॉक्टर से इलाज लें।