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बाड़मेर से करीब 56 किलोमीटर दूर लीलसर गांव से महज 1 किलोमीटर दूर शेरपुरा गांव में हिरणों का शिकार किया गया था। यहीं पर लगे एक बड़े पंडाल में गांव के महंत पूर्णनाथ सहित लोगों की भीड़ इकट्ठा थी। महंत पूर्णनाथ ने बताया- धर्म के अनुसार इनकी समाधि होती है।
जैसे साधु-संतों को समाधि देते हैं, वैसे ही मृत हिरणों को उनके शिकार वाली जगह पर ही समाधि दी गई है। हिंदू धर्म के अनुसार सारे विधि-विधान कर मंत्रोच्चार के साथ इन्हें अंतिम विदाई दी गई।
इससे पहले धोरीमन्ना हॉस्पिटल में हिरणों का पोस्टमॉर्टम करने के बाद सभी को लीलसर शेरपुरा रोड पर नाड़ी के पास लाया गया था।
बाड़मेर-बाड़मेर का लीलसर गांव… कभी 500 से 700 हिरणों से आबाद था। हिरण झुंड बनाकर बेखौफ रहते थे। गांव के लोग उन्हें बच्चों से भी ज्यादा दुलार देते थे, लेकिन शिकारियों ने सब कुछ तबाह कर दिया।
दो दिन पहले जब एक साथ सात हिरणों के अवशेष और उनके शव देखे तो ग्रामीण भड़क गए। दो दिन तक धरने पर बैठे रहे और खुलासा हुआ कि इन हिरणों का शिकार कर इनके मांस को राजस्थान की होटलों में बेचा जा रहा था। 7 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई।