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उदयपुर -उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) की सवीनाखेड़ा में 110 करोड़ों कीमत की सरकारी भूमि को खुर्दबुर्द करने वालों के खिलाफ हुई बुल्डोजर चलाने की कार्रवाई के बाद सियासी घमासान मचा हुआ। प्रदेश के सत्ताधारी दल भाजपा के दो धड़े अंदरखाने आमने-सामने हैं। एक धड़ा कार्रवाई के पक्ष में तो दूसरा धड़ा कार्रवाई के खिलाफ है।यूडीए इस भूमि पर 52 अवैध कोटड़ी, कमरे व 50 बाउंड्रीवॉल सहित 102 कच्चे पक्के निर्माण को ध्वस्त करने के अलावा 150 अन्य निर्माण (जिनमें अभी-भी लोग रह रहे हैं) व प्लॉट्स पर अवैध कब्जे बता रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार इन 200 लोगों को इस सरकारी भूमि पर प्लॉट, कोटड़ी, कमरे आदि बेचने वाले जालसाजों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? इन 250 परिवारों के औसत 5 लाख से हिसाब से खून-पसीने की कमाई के 12.50 करोड़ रुपए कौन लौटवाएगा?
सरकारी भूमि को षड्यंत्रपूर्वक खुर्दबुर्द करने वाले सफेदपोश राजनेताओं के चेहरे बेनकाब करने से यूडीए क्यों डर रहा है? तैयारी के बाद भी पिछले तीन दिन से पुलिस में सरकारी भूमि को खुर्दबुर्द करने का मुकदमा दर्ज नहीं करा पाना यूडीए पर राजनेताओं के दबाव को दर्शा रहा है।
पहले आदिवासियों के नाम अवैध कब्जे, फिर खुद ही खरीदते गए
यूडीए अधिकारी बताते हैं कि इस सरकारी भूमि पर कुछ राजनेता मिलकर अवैध कब्जाते रहे। ट्रांसपोर्ट नगर से सटे सवीना खेड़ा में जमीन की बाजार कीमत 4000-6000 रुपए वर्ग फीट है। कुछ नेताओं ने पहले सरकारी भूमि को आदिवासियों के नाम बिजली कनेक्शन दिलाकर कब्जे किए, फिर यही जमीन 500-500 रुपए के स्टांप पर खुद के परिजनों के नाम कर ली।यहां सभी सवाल यह है कि जब यह भूमि ही यूडीए है तो इसकी रजिस्ट्री किसी के पास नहीं थी तो क्या नेताओं को परिजनों के नाम खरीददारी करते समय यह नहीं पता था कि यह जमीन यूडीए की संपत्ति है? क्या बिजली कनेक्शन दिलाने वाले सरपंचों को एनओसी देते समय इस बात का बोध नहीं था?

