PALI SIROHI ONLINEझुंझुनूं। खेती की जमीन को फर्जीवाड़े से बेचने, फर्जी तरीके से नामांतरण पर रोक लगाने के लिए सरकार अगले साल से नया कार्य करने पर विचार कर रही है। नए साल से कृषि भूमि की जमाबंदी को आधार से लिंक किया जाएगा। इसके लिए अभी से तैयारियां शुरू हो गई है। पहले चरण में पटवारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके बाद आधार की तरह खेत की जमीन की एक यूनीक लैंड आईडी बनाई जाएगी, जिसमें उस व्यक्ति की अचल संपत्ति से जुड़ी पूरी जानकारी होगी।लिंक करवाने के लिए किसान को जमाबंदी की नकल, आधार, मोबाइल नम्बर व अन्य दस्तावेज देने होंगे। इसके लिए अलग से शिविर लगाए जाएंगे। शिविर में होने वाले कार्य की जानकारी भी आने लगी है। हालांकि अभी विस्तृत गाइड लाइन जारी नहीं हुई है। यह अगले साल जारी हो सकती है।यह फायदे होंगेआधार को जमाबंदी से लिंक करने पर फर्जी बेचान पर रोक लगेगी।
जमीन के असली मालिक का पता आसानी से लग जाएगा।
जमीन का नामांतरण आसानी से हो जाएगा।
आधार से मोबाइल नम्बर पहले से लिंक्ड है, ऐसे में जमीन की सभी गतिविधियों की जानकारी मोबाइल पर मिलती रहेगी।
जमाबंदी में जमीन में किसी तरह के किस्म के बदलाव को लेकर एसएमएस के माध्यम से आपको अलर्ट मिलेगा।
जमीन का मुआवजा दूसरा व्यक्ति नहीं उठा सकेगा।यह आएगी समस्या…जमाबंदी को आधार कार्ड से लिंक करने में अनेक बड़ी परेशानी भी आएगी। राज्य के हजारों गांवों में ऐसी जमीन मिल जाएगी जिसके नाम से जमीन का खाता है, उस खाताधारक का निधन कई वर्ष पहले हो चुका। कई जगह तो हालत ऐसे हैं कि जमीन परदादा के नाम से है। परदादा के बाद दादा का भी निधन हो चुका। ऐसे में उनके जनाधार और आधार कार्ड ही नहीं बने थे। ऐसे मामलों में परेशानी आ सकती है।मुआवजा दूसरा व्यक्ति नहीं उठा सकता
सरकार जब जमीन का अधिग्रहण करती है तो मुआवजा देने से पहले जमाबंदी को जनाधार से लिंक करवाने लग गए हैं। इसका फायदा यह होना लगा है कि मुआवजा दूसरा व्यक्ति नहीं उठा सकता। राशि सीधे खाते में चली जाती है।उम्मेद महला, भू अभिलेख निरीक्षक
लिंक करने के अनेक फायदे होंगे
जमाबंदी को आधार से लिंक करवाने के लिए ट्रेनिंग प्रोगाम आ गया है। पहले चरण में पटवारियों को ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके बाद आगे की गाइडलाइन के अनुसार कार्य किया जाएगा। इसके फायदे होंगे।गांवों में नहीं होते नामांतरणआजादी के बाद अनेक सरकार आई। अनेक कानून बने। नियम व उप नियम बने। लेकिन जमीन के नामांतरण व बंटवारे की अति जटिल प्रक्रिया को सरल व आसान बनाने पर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। इस कारण अभी भी जमीनें दादा व परदादा के नाम से चली आ रही है। कई जगह तो जमीन के बंटवारे पर बड़े अपराध तक हो रहे हैं।
दुःखद विज्ञापन