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सिरोही-भाद्रपद एकादशी को सिरोही में विजय और शहादत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। आराध्य देव सारणेश्वर महादेव का वार्षिक मेला इसी दिन भरा जाता है। जिसमें विशेष तौर पर देवासी समाज का मेला रहता है। इसमें संध्या आरती के बाद समाज की समस्याओं के साथ विभिन्न मुद्दों पर चर्चा और निर्णय लिए जाते हैं। माना जाता है कि आज ही के दिन अलाउद्दीन खिलजी की सेना को सिरोही रियासत से हार का सामना करना पड़ा था। इस जीत में सबसे बड़ी भूमिका देवासी समाज ने निभाई थी।
इतिहासकार डॉक्टर उदयसिंह डिंगार ने बताया कि सन् 1298 ई. को दिल्ली के शक्तिशाली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की सेना को पराजित कर वर्तमान श्रीसारणेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग को तत्कालीन शासक महाराव विजयराज देवड़ा ने स्थापित किया था। इस ऐतिहासिक लड़ाई में रेबारी (देवासी) समुदाय द्वारा अद्भुत संघर्ष कर अपूर्व बलिदान दिया गया था। रेबारी (देवासी) समाज के इस ऐतिहासिक शौर्य और बलिदान को लेकर इस मेले का आयोजन किया जाता है। इस दृष्टि से धजेरी एकादशी का यह मेला शौर्य और विजय का प्रतीक माना जाता है। यह मेला शौर्य, शहादत, ऐतिहासिक विजय, लोक सांस्कृतिक परंपरा और गौरवशाली इतिहास का प्रतीक माना जाता है।
श्रीसारणेश्वर मंदिर में जलझूलनी ग्यारस को मंदिर के देख रेख और पूजा पाठ की पूरी जिम्मेदारी देवासी समाज को सौंप दी जाती है। शाम ढलने के बाद इस मंदिर में दूसरे किसी भी समाज के लोगों का आने जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध रहता है। यहां तक की देवासी समाज का व्यक्ति भी अगर पारंपरिक वेशभूषा में नहीं आए तो उसे भी प्रवेश नहीं दिया जाता है। शाम को आरती के बाद समाज के महत्वपूर्ण निर्णय को लेकर समाज की बैठक होती है। जिसमें दूसरे किसी समाज के किसी भी व्यक्ति के प्रवेश पर प्रतिबंध रहता है।