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जयपुर-अप्रैल महीने की शुरुआत इस बार शीतला माता की पूजा से होगी। सोमवार एक अप्रैल को चैत्र कृष्ण सप्तमी के दिन ही बास्योड़ा लोकपर्व मनाया जाएगा। यानी शीतलाष्टमी का त्योहार इस बार सप्तमी को ही मनाया जाएगा, जबकि रांधा-पुआ रविवार को मनेगा, जिसमें वैष्णव जनों के घरों में माता शीतला को अर्पित होने वाले व्यंजन बनाए जाएंगे।
खास बात यह है कि इस बार अष्टमी के दिन मंगलवार आने से शीतला माता को ठंडे व्यंजनों का भोग एक दिन पहले सोमवार को चढ़ाया जाएगा, क्योंकि ज्योतिष शास्त्रों में मंगलवार को गर्म और सोमवार को शीतल दिन माना गया है। इसी तरह चैत्र की छठ के दिन रांधा पुआ व सप्तमी को बास्योड़ा पर्व मनाया जाएगा। मान्यता है कि शीतला माता की पूजा और व्रत करने से चेचक समेत कई बीमारियां और संक्रमण से बचाव होता है। ये समय शीत ऋतु के जाने और ग्रीष्म ऋतु के आने का भी है।
शीतला माता लक्खी मेला 2 दिन भरेगा
चाकसू शील की डूंगरी स्थित शीतला माता मंदिर में भी लक्खी मेला इस बार दो दिन भरेगा। सप्तमी के दिन ही भोग अर्पित किया जाएगा। मंदिर श्री शीतला माता ट्रस्ट के महामंत्री लक्ष्मण प्रजापति ने बताया कि प्रदेश का प्रसिद्ध व ऐतिहासिक श्री शीतला माता का दो दिवसीय लक्खी मेला 31 मार्च से 1 अप्रैल तक आयोजित होगा। श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सभी आवश्यक व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दे दिया गया है। सफाई व्यवस्था, पानी-शौचालय, सीसीटीवी, मंदिर परिसर में रंग रोगन सहित अन्य कार्य पूरे कर दिए गए है।
ठंडा खाने की परंपरा
शीतला माता का ही व्रत ऐसा है, जिसमें शीतल यानी ठंडा भोजन करते हैं। इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन करने की परंपरा है। इसलिए व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव हो जाता है। इस पर्व से इसलिए ठंडा खाना खाने की परंपरा बनाई गई है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा खाने से संक्रमण और अन्य बीमारियां नहीं होती।
मंगलवार को इसलिए नहीं की जाती शीतला माता की पूजा
बंशीधर पंचांग के निर्माता ज्योतिषाचार्य दामोदर प्रसाद शर्मा ने बताया कि शीतल स्वभाव की माता होने से आक्रमक वार में माता के भोग नहीं लगता है। इस बार मंगलवार को शीतलाष्टमी आने से एक दिन पहले सौम्य वार सोमवार सप्तमी को ही बास्योड़ा पर्व मनाया जाएगा और शीतला माता के ठंडे पकवानों का भोग लगेगा। वहीं, चाकसू स्थित शील की डूंगरी पर मेला भी सप्तमी के दिन ही भरेगा।
बास्योड़ा पर्व के दिन शीतला माता को केवल ठंडे पकवानों का ही भोग लगाया जाता है। इस दिन माता की पूजा के दौरान दीया व अगरबत्ती भी नहीं लगानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि माता का स्वभाव शीतल होने से गर्म प्रसाद या जिनमें गर्माहट हो वैसी सामग्री का उस दिन उपयोग नहीं करते है।
बीमारियों से बचने के लिए व्रत
माना जाता है कि देवी शीतला चेचक और खसरा बीमारियों को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों को दूर करने के लिए पूजा करते हैं। सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की सलामती के लिए और घर में सुख, शांति के लिए बास्योड़ा के दिन प्रसादी बनाकर अगले दिन माता को पूजा जाता है।
1 अप्रैल की रात को आ जाएगी अष्टमी तिथि
ज्योतिषाचार्य अनिष व्यास ने बताया कि चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 1 अप्रैल को रात्रि 9 बजकर 9 मिनट से शुरू होगी, जो 2 अप्रैल को रात्रि 8 बजकर 8 मिनट तक रहेगी। 2 अप्रैल को मंगलवार होने की वजह से 1 अप्रैल को ही शीतला सप्तमी के दिन माता के भोग लगाया जाएगा और ठंडा भोजन किया जाएगा। ऐसे में 1 अप्रैल को लोकपर्व बास्योड़ा मनाया जाएगा।
इस दिन शीतला माता की पूजा-अर्चना करने के साथ महिलाएं व्रत भी रखेंगी। इसके एक दिन पहले 1 अप्रैल को रांधा पुआ होगा, जिसमें घर-घर महिलाएं शीतलाष्टमी (बास्योड़ा) के लिए भोजन पकवान बनाएगी। शीतलाष्टमी के दिन सुबह शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाएगा। इसके बाद लोग ठंडे पकवान ही खाएंगे। बास्योड़ा पर शीलता माता को ठंडा भोजन अर्पित कर चेचक आदि बीमारियों से परिवार को बचाने की प्रार्थना की जाएगी।
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