PALI SIROHI ONLINE
जोधपुर-जोधपुर शहर के नागोरी गेट कागा की पहाड़ियों में स्थित शीतला माता मंदिर में इस बार 1 अप्रैल से शुरू होगा। इसको लेकर तैयारियां पूर्ण की गई है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पॉलिथीन की थैली पर प्रतिबंध लगाया गया है। मंदिर परिसर में पॉलिथीन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध रहेगा। इसके अलावा इस बार पूरे मंदिर परिसर को वातानुकूलित किया गया है।
कार्यालय अधिकारी कुलदीप गहलोत ने बताया कि 1 अप्रैल शाम 4:30 बजे ध्वजारोहण के साथ मेले की शुरुआत होगी। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ मंदिर 24 घंटे खुला रहेगा। मंदिर में 35 पुजारी की टीम 2 घंटे के अवधि में बारी बारी से सेवाएं देगी। वहीं सुरक्षा के लिहाज से मंदिर परिसर में सुरक्षा गार्ड और 60 हाई क्वालिटी के कैमरे भी लगवाए गए हैं। वहीं श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए बेरिकेडिंग भी की गई है। इसके अलावा पीने के पानी के लिए आरओ प्लांट भी लगाया गया है।
मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मल कच्छवाहा, उपाध्यक्ष जयंत सांखला, दिलीप सिंह भाटी, सचिव देवेश कच्छवाहा, सह सचिव अजीत सिंह चौहान, कोषाध्यक्ष दलपत सिंह गहलोत, मेला कोर्डिनेटर माधव सिंह सांखला सहित टीम व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देने में जुटी है।
ये भी पढ़े
जोधपुर में अगले दिन होती पूजा
बता दें की देश भर में शीतला माता का मेला शीतला सप्तमी को मनाया जाता है, लेकिन जोधपुर में ये मेला अगले दिन अष्टमी को मनाया जाता है। इसके पीछे की वजह यहां के राजा का वो आदेश था जो उनके पुत्र की मौत के बात उन्होंने जारी किया था। चेचक (माता) निकलने की वजह से राजा के पुत्र की मौत हो गई ऐसे में जोधपुर के महाराजा विजय सिंह ने गुस्से में आकर शीतला माता को जोधपुर शहर से निष्कासित कर दिया इसके बाद से अब तक जोधपुर में शीतला माता की पूजा अष्टमी को की जाती है।।
बेटे के निधन के बाद गुस्सा हुए राजा
दरअसल जोधपुर के महाराजा विजय सिंह साल 1752 में अपने पिता महाराजा बखत सिंह के निधन के बाद जोधपुर के महाराजा बने थे। इसके 1 साल बाद ही महाराज राम सिंह ने उनसे राज छीन लिया, लेकिन कुछ वर्षों बाद उनका निधन हो गया। ऐसे में एक बार फिर से 1772 में महाराजा विजय सिंह जोधपुर के महाराजा बने। कुछ वर्षों के बाद चेचक (स्थानीय भाषा में माता) होने की वजह से शीतला सप्तमी को उनके बड़े पुत्र का निधन हो गया। इसे माता का प्रकोप माना गया।
माता के प्रकोप से हुए पुत्र के निधन से दुखी महाराजा ने शीतला माता को शहर से निष्कासन का आदेश जारी कर दिया। पूर्व में यह प्रतिमा जुनी मंडी स्थित शीतला माता मंदिर थी जहां से प्रतिमा को कागा की पहाड़ियों में पहुंचा दिया गया। यहां पर शमशान स्थल था इसके समीप ही एक बाग था। शमशान के पास की पहाड़ी में माता की प्रतिमा को रखवा दिया गया।
दरवाजों में भरवाया नमक
इतना ही नहीं पुत्र की मौत से दुखी महाराजा ने कागा की तरफ खुलने वाले नगर के द्वार नागौरी गेट को नमक (स्थानीय भाषा में लूण) से चुनवा दिया। इसकी वजह से आज भी बोलचाल में इस द्वारा को नागोरी गेट के बजाय लुनिया दरवाजा भी कहते हैं। हालांकि बदलते समय के साथ महाराज का गुस्सा शांत हो गया लेकिन शीतला माता का निष्कासन रद्द नहीं हो पाया। आज भी वर्षों बाद माता की पूजा इसी स्थान पर की जाती है। वर्तमान में यहां पर माता का भव्य मंदिर बनाया गया है। तब से लेकर आज तक शहर के लोग सप्तमी के बजाय अष्टमी को ही शीतला माता की पूजा करते हैं।