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चित्तौड़गढ़-भदेसर में दीपोत्सव पर आतिशबाजी की एक परंपरा निभाई जाती है, जिसमें सभी युवक अलग-अलग ग्रुप्स बनाकर एक दूसरे के ऊपर पटाखे फेंकते हैं। यह परंपरा दीपावली और उसके अगले दिन निभाई जाती है बड़े बुजुर्ग इसे एक रस्म बताते हैं। इस दौरान कई युवक चोटिल भी होते हैं लेकिन इसे सब लोग नॉर्मल ही मानते हैं।
भदेसर उपखंड में दीपावली और उसके अगले दिन संध्या के समय एक अलग परंपरा निभाते हैं जिसमें कई युवक अलग-अलग ग्रुप्स बनाकर आतिशबाजी करते हैं और कुछ देर बाद यह युवक आतिशबाजी करते हुए एक दूसरे के ऊपर पटाखे फेंकना शुरू करते हैं। देर रात तक यह कार्यक्रम चलता रहता है। इस दौरान छोटे और बड़े कई तरह के पटाखे फेंके जाते हैं। इस रस्म को निभाते निभाते कई युवक घायल भी हो जाते हैं लेकिन इससे मस्ती की तरह लेते हुए नॉर्मल माना जाता है। वैसे बड़े पटाखों को हाथों में लेकर दूर फेंकना भी किसी खतरे से खाली नहीं है।
बेलों को भड़काने की भी थी परंपरा
कस्बे के बुजुर्ग ओम प्रकाश आचार्य ने बताया कि यह रस्म कई सालों से चली आ रही है, लेकिन यह किस लिए शुरू की गई इसकी जानकारी नहीं है कुछ बुजुगों का कहना है कि पहले बैल को भड़काया जाता था उसके लिए आतिशबाजी फेंकी जाती थी। पहले रॉकेट बड़ी मात्रा में चलाए जाते थे लेकिन अब वह प्रचलन धीरे-धीरे कम हो गया। अब अधिकतर सूतली बम, फुलझड़ी या चॉकलेट बम एक दूसरे पर फेंकते हैं। आतिशबाजी खत्म होने के बाद युवाओं की टोलियां एक दूसरे के घर जाकर दीपावली और गोवर्धन पूजा की बधाई भी देते है।
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