यहा मां चामुंडा के दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालुः

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माउंट आबू-माउंट आबू शहर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मां चामुंडा और मां काली के मंदिर में नवरात्र के अवसर पर दूर-दूर भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंच रहे हैं। समुद्र तल से साढ़े 1450 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद मां चामुंडा और चट्टानों के बीचो-बीच मां काली मंदिर की पुराने समय से ही विशेष मान्यता है।
माउंट आबू के अचलगढ़ में मौजूद मां चामुंडा / मां काली मंदिर की 40 साल से देखरेख कर रहे पंडित छोगाराम बताते हैं कि ये मंदिर महाभारत के समय के बने हुए हैं। मां चामुंडा और कुछ दूरी पर चट्टानों में मौजूद मां काली के मंदिर में नवरात्रि के दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन कर प्रसाद चढ़ाते हैं। बताया जाता है कि गोपीचंद महाराज जब 1452 में माउंट आए थे, तब उन्होंने इसी मंदिर के अंदर गुप्त चट्टान में 12 साल तपस्या की थी। उस वक्त मां काली का यह छोटा मंदिर मौजूद था, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां काली ने दर्शन दिए थे। यहां मां काली की प्रतिमा को चट्टान पर ही मूर्त रूप दिया गया है।

5 हजार साल पुराना है मंदिर

पर्यटन स्थल अचलगढ़ से भी करीबन 2 किलोमीटर की दूरी पर मां चामुंडा मंदिर मौजूद है। जहां चामुंडा मंदिर से 10 मिनट की दूरी पर पहाड़ों में विराजित माँ काली का मंदिर भी स्थापित है। मां चामुंडा का मंदिर करीब 5 हजार वर्ष पुराना है। मंदिर में काल भैरव और गोरे भैरव का भी मंदिर मौजूद है। वहीं से मात्र 10 मिनट की दूरी पर उबड़-खाबड़ रास्ते में चट्टानों और जंगल से होते हुए हरी-भरी घाटियों के बीच पहाड़ों के मध्य मां काली का मंदिर मौजूद है। यह मंदिर भी हजारों वर्ष पुराना बताया जाता है। गोपीचंद महाराज की गुफा में ही मां काली की करीबन साढ़े छः फीट की प्राकृतिक प्रतिमा का मूर्त रूप में मौजूद है। जो कि उन्हीं चट्टानो पर बारीकी से कारीगरी कर उसे मूर्त रूप दिया गया है। बताया यह भी जाता है कि गोपीचंद महाराज मां काली के भक्त थे। गोपीचंद महाराज ने साढ़े 12 साल जहां तपस्या की वहां मंदिर के अंदर ही गुप्त चट्टान जहां काला- घोर अंधेरा है, वहां गुप्त चट्टान में गोपीचंद महाराज की छोटी प्रतिमा भी मौजूद है।

मां काली मंदिर के सामने है भर्तृहरि महल मां काली के मंदिर के बिल्कुल सामने घने जंगलों के बीचों बीच राजा भर्तृहरि का महल है। राजा भर्तृहरि उज्जैन के महाराजा थे। गोपीचंद महाराज राजा भर्तृहरि के मामा थे। गोपीचंद महाराज का पूजा स्थल और भर्तृहरि का महल आमने-सामने ही था, वह महल अभी पूरी तरह से खंडहर अवस्था में है।

दाल-खरमे और चूरमे के लड्डू का भोग नवरात्रि के दिनों में यहां पूरे 9 दिन अखंड ज्योत जलती है। भक्तजनों के लिए कई तरह की प्रसादी बनाई जाती है, इसमें मुख्यतः दाल-खरमे और चूरमे के लड्डू का भोग चढ़ाया जाता है। पूरे 9 दिन रात को भजन संध्या का कार्यक्रम भी होता है। वहीं सप्तमी के दिन मां काली की विशेष पूजा-अर्चना होती है और दाल खरमे व चूरमे का भोग लगाया जाता हैं। मां काली के मंदिर में हमेशा अखंड ज्योत रहती है। साथ ही इस मंदिर में हवन कुंड की अति प्राचीन धूनी भी मौजूद है। ऐतिहासिक तौर पर गोपीचंद महाराज की मूर्ति स्थापित की गई हैं। आने वाले अधिकतर सभी श्रद्धालु पत्थर के ऊपर पत्थर रख मां चामुंडा और मां काली से अपनी मनोकामना मांगते है।

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